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या शास्वत सुखमय अवस्थामें विद्यमान है। बद्ध जीव उस उन्नत पद को पाना चाहते हैं। जो मुक्तत्व से संबंध्द है अर्थात् जो मोक्ष तत्व का बोध कराता है। बद्ध जीव मुक्तावस्था पाने की दिशामें गतिशील और उद्यमशील होते हैं। तब उन्हें दो मार्ग अपनाने होते हैं। पहला अवरोध का और दूसरा नाश का। कर्मों का प्रवाह सर्वथा अवरोध करता है। इसके लिए उन्हें संवर तत्व को अपनाना होता है। संचित कर्म उच्छिन्न हो जाए इसके लिए निर्जरा का आश्रय लेना होता है। २२९ इन दोनों मार्गों का अवलंबन लेकर जीव परिश्रम और जागृति से उन पर अग्रेसर होने से ही मोक्ष की सिद्धि प्राप्त कर सकता है।२३०
मोक्ष का ज्ञान और मोक्ष की सिद्धि बद्ध जीवों को बंधतत्व का भी परिचय करवाते हैं । संसारी जीव सुखात्मक एवं दुःखात्मक स्थितियोंसे गुजरते हैं और उन्हें मालूम होता है कि - पुण्यतत्व क्या है ? पापतत्व क्या है ? जिन जिन आत्माओं के साथ जो पुण्यकर्म बंधे हुए है वे उदय में आकर सुखप्रद होते हैं और जो पाप कर्म बंधे हुए हैं वे उदित होकर दुःखप्रद सिद्ध होते हैं। इसी तरह पाप पुण्य का स्रोत आश्रवतत्व है।
आचार्य की सन्निधि से अथवा आचार्य पद के जप से जब साधक आचार, व्रत आराधना तथा संयम की दिशामें प्रगतिशील होता है तो संवर और निर्जरामूलक अध्यवसाय में प्रवृत्त होता है। आचार्य और उपाध्याय का संसर्ग या जप साधक को ज्ञान की दिशामें अग्रसर होने की प्रेरणा देता है, इससे इसको हेय और उपादेय तत्वका बोध होता है। वह पुण्य क्ने पाप जानते हुए भी पुण्य को अपनाता है। पाप को छोड़ता है आश्रव का निरोध करता है और बंध मिट जाते हैं। ___ पंच महाव्रत धारी साधुओं के सत्संग से, साधुपद के जप से मुमुक्षु को साधना पथ की ओर आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती है। स्वाध्याय, जप, तप, ध्यान, प्रत्याख्यान आदि द्वारा अपनी साधना को उत्तरोत्तर निर्मल, उज्ज्वल बनाने की अनवरत प्रेरणा प्राप्त करता है और अंत में सिद्धपद प्राप्त करने की विशुद्धि मिल सकती है।२३१
नवकार मंत्र की इस चर्चा से हमें यह ज्ञात होता है कि - नवकार मंत्र के पाँचों पदों में इतनी महान शक्तियाँ विद्यमान है। शास्त्रकारोने तो बड़े आदर से बताया है कि - नवकार मंत्र के प्रत्येक वर्ण में बहुतसी विद्याएँ समन्वित है और इससे बढ़कर कल्याणकारी मंत्र विश्वमें शायद ही और कोई मिल सके । नवकार मंत्र और नवतत्व दोनों का मिलन अत्यंत पवित्र और मांगलिक है। किसी भी साधक के लिए नवकार मंत्र परम उपकारी सिद्ध हो सकता है। नवतत्वों के ज्ञान से साधक साधना की दिशा में दृढ़ता से आगे बढ़ सकता है और पुद्गल की आसक्ति को छोड़कर आत्मा की शाश्वतता प्राप्त कर सकता है।
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