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को प्राप्त करना चाहता है, उसे विज्ञान और तत्वज्ञान दोनों को स्वीकार ना होगा । शांति रहित शक्ति क्रूरता और संहार का रुप धारण कर लेती है।
___ धर्म के अभाव में मनुष्य विवेक शून्य हुआ और बाद में विवेक रहित ज्ञान से विनाशक शस्त्रों की खोज करके मानवीय संस्कृति और सारे संसार के लिए बहुत बड़ी समस्या का निर्माण किया है। विश्व मानव के कल्याण के लिए शांति पाने के लिए विज्ञान और तत्वज्ञान के समन्वय की अतीव आवश्यकता है। सामान्य ज्ञान से किसी व्यक्ति की जानकारी में वृद्धि अवश्य हो सकती है, पर विशेष आत्मज्ञान ही सब दुःखों से मुक्त होने के लिए उपयुक्त होगा। साधक को सब दुःखोंसे मुक्ति पाने के लिए नवतत्वों का वास्तविक ज्ञान अत्यंत आवश्यक है ।
संसारी जीव अनेक प्रकारकी शारीरिक तथा मानसिक पीड़ाएँ भोगता है और उससे मुक्त होने की इच्छा करता है। रोग वृद्धि किस प्रकार सकती है१ पुराने रोग किस प्रकार दूर हो सकते है इसका भी ज्ञान आवश्यक है। संसार के सुखदु:खों का कारण क्या है ? इन सब प्रश्नों के उत्तर नवतत्वों में मिल सकते है। नवतत्वों का ज्ञान आत्मिक उन्नति का विज्ञान है। जो कोई आत्मिक आनंद के शोधक है और शांति के उपासक है उन्हें नवतत्वों का रहस्य जानकर चिंतन- मनन करना चाहिए। नवतत्वों में सर्वप्रथम तत्व जीवतत्व है और अंतिम तत्व मोक्षतत्व है। जीव को मोक्ष कैसे प्राप्त होगा इसका मार्ग नवतत्वों में दिखाया गया है।
नवतत्व निम्नलिखित है। १) जीव २) अजीव ३) पुण्य ४) पाप ५) आश्रव ६) संवर ७) निर्जरा ८) बंध और ९) मोक्ष २२३ १) जीवतत्व - जिसमें चैतन्य जानने की और देखने की शक्ति है, निज गुणों का ज्ञाता,
भोगता है। शुभाशुभ कर्मों का कर्ता और भोगता है उसे जीव कहते हैं । २२४ २) अजीवतत्व - जीव के विरुद्ध लक्षणवाला अजीवतत्व है। जीव चेतन है, तो अजीव
अचेतन है। ३) पुण्यतत्व - उत्तम अर्थात् शुभ फल प्राप्त करानेवाला कर्म पुण्य है। इस कर्म के उदय
संचय से सुखका अनुभव होता है। ४) पापतत्व - पुण्यकर्म के विरुध्द अर्थात् अशुभ कर्मोके फल प्राप्त करानेवाला और
जिनके उदय से दु:ख हो रहा है यह पापतत्व है। आश्रव तत्व : जिसके योग से कर्म जीव की ओर आते हैं अर्थात्, शुभाशुभ कर्म के उपादान से हिंसा आदि में वृद्धि होती है वही आश्रव तत्व है। आश्रव के कारण ही संसार
है
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