SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 277
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भावनाओंपर चिंतन करना नितांत आवश्यक है । २२२ नमस्कार महामंत्र के प्रत्येक पदमें मानव कल्याण का परमहित दर्शाया गया है। ऐसा भी कहा गया है कि - प्रत्येक वर्ण में संसार के सभी लोगों का कल्याण करनेवाली सात्विक विद्याका परमतेजोमय उल्लेख मिलता है। प्रत्येक पद साधक को मैत्री, करुणा आदि चारों योग भावनाओं की ओर प्रगति कराने में सहायक बन सकते हैं। अरिहंत या सिद्ध को नमस्कार करने के साथ ही साधक के चित्तसे पाप और विकार गायब हो जाते हैं। वैर वृत्ति क्रमश: मंद हो जाती है और संसार के सभी जीवों की ओर स्नेहभाव और करुणा भाव का उदय होता है। सभी जीवों की ओर समभाव या समताभाव की वृद्धि होती है। आचार्य, उपाध्याय और साधुभगवंतों को नमस्कार करने से उनकी निश्रा में बैठकर धर्म श्रवण करने से, धर्म क्या है, अधर्म क्या है ? पाप क्या है, पुण्य क्या है ? इन सभी उत्तम धर्म विचार का ज्ञान होता है। साधक जागृत बन जाता है और दोषों को दूर करने की प्रवृत्ति करता है और क्रमश: गण प्राप्त करके आत्मा के वास्तविक स्वरुपका परिचय भी कर सकता है। उत्तरोत्तर मलीन भावों का नाश होता है और पवित्र मांगल्यकारक और कल्याण कारकभावोंका उदय होता है - चारों योग भावनाओं का विकास सरलता से हो सकता है। और सर्वोत्तम मंगल की परम इच्छा तृप्त हो सकती है इसलिए नवकार मंत्र के विश्वमंत्र भी कहा गया है । भवनाशिनी भावनाओंका इस मंत्र में मंगल मिलन हुआ है। शास्त्रकारोंने यह भी दर्शाया है कि - यदि कोई पूर्ण- श्रद्धा से, एक चित्त से नवकार मंत्र की आराधना करेगा, नामस्मरण या जाप करेगा तो भी इस साधक के भीतर में परमशांति और परम आनंद का आगमन होगा। सभी उत्तम भावनाओं का उत्कर्ष होगा और वह साधक रागद्वेष पर विजय पाकर परमशांति और पर समाधि प्राप्त कर सकेगा। नमस्कार महामंत्र और नवतत्त्व आज के वैज्ञानिक युग में बुद्धिजीवी मानव अपने को शक्ति संपन्न बनाने का सतत् प्रयास कर रहा है किंतु उसका मन आध्यात्मिक मूल्यों की रिक्तता के कारण अशांति से ग्रसित है । विज्ञान से शक्ति प्राप्त होती है लेकिन मन:शांति नष्ट हो जाती है। वैज्ञानिक आवश्यकता से मानव अवश्य ही शक्तिशाली बना है लेकिन वह अपना मानसिक, स्वास्थ्य खो बैठा है। जिन्होंने धर्म को स्वीकार किया उन्हें शांति का लाभ तो हुआ लेकिन दूसरों की तुलना में शक्तिहीन सिद्ध हुए। कोई भी व्यक्ति या राष्ट्र शक्ति और शांति दोनों (२४४)
SR No.002297
Book TitleJain Dharm ke Navkar Mantra me Namo Loe Savva Sahunam Is Pad ka Samikshatmak Samalochan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharitrasheelashreeji
PublisherSanskrit Bhasha Vibhag
Publication Year2006
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy