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संसार का त्याग किया - सर्वस्व का त्याग किया। प्रभु की करुणा का उत्तम उदाहरण तो दरिद्र याचक को देवदुष्य वस्त्र का दान करने में प्रगट होती है। भगवान की करुणा के अनेकों उदाहरण हमें मिलते हैं।
दीन- दुखी, आर्त और पीड़ित जीवों के प्रति करुणा भावना रखनी चाहिए। करुणासे हृदय कोमल होता है, मनोवृत्ति शांत होती है और अहिंसा की जननी करुणा है। शांतसुधा रसमें पूज्य विनय विजयजी महाराज फरमाते है कि - दु:खी, पिड़ित एवं त्रस्त जीव ही करुणाभाव का विषय है। करुणा सदा जीवाश्रयी है, जड़ाश्रयी नहीं हैं । करुणा सुख और दुःख को केंद्रमें रखकर या तो निमित्त होकर आत्माशुद्धि एवं आत्मशांति करती है। स्व और पर उभय को करुणा भावना शांति प्रदान करने वाली यह भावना है ।२१६ कषायों को क्षय करनेवाली यह भावना है। क्रोधादि को दूर करके आत्माको नम्र और शांत बनाने वाली यह भावना है।
कषाय के परिणामों को जीव सहन करते हैं। ऐसे जीवों पर करुणा करना यह ज्ञानी गीतार्थ की करुणा है। सामान्य जन की करुणा और ज्ञानी की करुणामें जमीन आसमान का अंतर है। सामान्य मानवी की करुणा को द्रव्य करुणा कहते हैं और गीतार्थ की करुणा को भाव करुणा कहा जाता है। दुःख से पीड़ित संसारी लोगों को संसार से तारनेवाली कल्याण भावना महान करुणा है। करुणाहृदयी ज्ञानी, आत्मा, कर्म से त्रस्त, संसारी जीवों को सच्चा सुख का पथ दिखा सकते हैं और अनंतधाममें निवास करने का उपाय भी बता सकते हैं।२१७
मैत्री और करुणा ये दोनों भावनाओं एक दूसरे से बहुत निकट हैं हमें ऐसे भी उदाहरण मिलते है कि - किसी एक विषय में कभी-कभी इन दोनों भावनाओं का मिलन हो जाता है - सभी जीव सुख प्राप्त करें। इस वाक्य में मैत्री और करुणा - प्रेम और दया दोनों का मिलन हो गया है। मैत्रीभावना से प्रेम विश्व व्यापक हो जाता है । ईर्षा का भाव दूर होता है, करुणा भावना से जीवमात्र को आत्मवत् - अपने समान समझने की भावना होने से वैर और द्वेष दूर होता है और क्रोधादि कषयों का क्रमश: विगलन होता है।
संसार के दु:ख ग्रस्त और कर्म से त्रस्त जीवोंको दु:ख मुक्ति के उपाय दिखाने का कार्य करुणा भावना करती है। निराधार, अनाथ के लिए उनके दु:खनिवारण का प्रयत्न करना ही सच्ची करुणा भावना है। यदि संसार के दु:ख से पिड़ित संसारी लोगों के हृदय में प्रेम, दया और करुणा का भाव यदि जागृत न होवे तो हमें यह समझना चाहिए कि - हमारा हृदय हृदय नहीं है, पत्थर है । पत्थर दिलमें कभी करुणा का अविष्कार होता ही नहीं है। करुणा भावना शांत रससे भरी हुई है। इस भावना से अमृतरसपान का आनंद प्राप्त हो सकता है। द्वेष का सर्वथा नाश होता है। ऐसे अनुपम शांत रसका पान करके संसार के सभी जीव
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