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________________ पालन के लिए अश्व और अन्य प्राणियों को पानी भी छान के और पूरी यतनासे पिलाया जाता था। इस तरह सभी जीवों की ओर एकसी करुणा दया रखनी चाहिए । दयालू बनने के लिए कोई भी मूल्य चुकाना नहीं पड़ता । It does not cost be kind.' Kind hearts are more then coronets २१२ दयालु हृदय राजा के राजमुकुट से भी मूल्यवान है । २१३ - गणेशमुनिजी शास्त्रीने लिखा है - “दया नदी के तीर पर, चलते सारे धर्म । छिपा हुआ सत्कर्म में, दया धर्म का मर्म ॥ २१४ “जा घट दया न संचरे, ता घट जान मसाण ॥ २१५ द्रव्य और भाव करुणा भावना : भावना का स्थान व्यक्ति को मन है अर्थात् मनोयोगमें भावना भानी चाहिए। मात्र भावना का आदर्श रखकर ही साधक का काम पूरा नहीं होता है । द्रव्य करुणा भावनाही रखनी चाहिए, + अर्थात् दीन, दुःखी, अनाथ को यथा शक्ति कुछ न कुछ अवश्य देना चाहिये । दुःखियों के दुःख दूर करने का यथासंभव प्रयत्न करना चाहिये । दुःखी को किसी न किसी प्रकार की साधन सामग्री देकर भी उसका दुःख दूर किया जा सकता है । कभी कभी तो हमारे शांत, मिठे बोल भी दु:खी को प्रसन्न कर देते हैं। किसी को कुछ देना, सहायता करना उसे द्रव्य करुणा भावना कहते हैं । और किसी को शांति पहुँचाना, उसके दुःखको दूर करने का पुरुषार्थ करना यह भाव करुणा है। भावदया या भाव करुणा कोई भी कर सकते है - सवि जीव करूं शासन रसी ॥ - ऐसी मंगल भावना हमें करनी चाहिए । इससे हमारी आत्मा को बहुत लाभ होगा, कर्म निर्जरा होगी, विचारोंमें पवित्रता और निर्मलता आयेगी, क्रूरता और हिंसकता चली जाएगी। ( २३९) करुणा सागर भगवान महावीर दु: खीजन वत्सल, करुणासागर वीतराग परमात्मा भगवान महावीर स्वामीने संसारी अवस्था में एक साल तक दान देकर द्रव्य दया की । लाखों दीन दुःखियों को दु:ख दूर करके
SR No.002297
Book TitleJain Dharm ke Navkar Mantra me Namo Loe Savva Sahunam Is Pad ka Samikshatmak Samalochan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharitrasheelashreeji
PublisherSanskrit Bhasha Vibhag
Publication Year2006
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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