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संक्षेप में किसी भी प्रकार के प्राणी के दुःखमें उसके दुःखको दूर करने का उपाय करना, या तो इच्छापूर्वक प्रवृत्ति करने की उपकार बुद्धि की करुणा कहा गया है। इस व्याख्या को हम दूसरी तरह से दर्शा सकते हैं। पीड़ित प्राणी की व्याधी को दूर करने की इच्छा यही करुणा है और व्याधि में, रोग, सुख का नाश, धन की हानि धर्म-हीनता आदि का समावेश किया गया है। ___यह संसार सुख, दु:ख से भरा है। यदि पूछा जाए कि संसार कैसा है ? तो ज्ञानियोने प्रत्युत्तरमें दर्शाया है कि संसार सागर जैसा है, जिसमें सुख कम और दुःख ज्यादा है और इसमें सुख क्षणिक है।
वास्तवमें सुख है ही नहीं सुखाभास है। संसार के किसी भी सुख में दुःख समाया हुआ ही है। इसलिए ज्ञानियों ने दर्शाया है कि इस संसारमें जो व्यक्ति संसार के सुखों को छोड़ने की प्रवृत्ति करेगा वही तिरेगा - बचेगा।
वीतराग के शासन में प्रत्येक साधक का लक्ष्य यह होना चाहिये कि - सुखों का त्याग करना है और सुखों के त्याग सेही उनकी तृष्णाका अंत आ जाएगा । इच्छा आकाश की तरह अनंत है। इच्छा की पूर्ति कभी भी नहीं हो सकती। इच्छा या तृष्णा ही मानवी को भव भ्रमण करती हैं।२०७
परदुःख विनशिनी करुणा :
करुणा भावना का स्वरुप दर्शाते हुए महापुरुषोने उसे दु:ख विनाशिनी भावना कही है । क्रूरता, निर्दयता, निष्ठुरता, घातकी वृत्ति आदि करुणा भावना के शत्रु है। ये सब करुणा भावना भाने नहीं देते है। इसलिए हमारा पुरुषार्थ यह होना चाहिए कि इन सब को किसी भी तरह हम दूर कर दें और हमारे हृदय में करुणारुपी आत्मगुण का उत्तरोत्तर विकास करें। सतत् करुणा भावना में भीगे रहने से हमारा जीव मात्रके प्रति समभाव रहता है। जीवमात्र की और तुल्यभाव जगानेवाली करुणा भावना है।
___ करुणा भावना का उपदेश मंत्र है - किसी भी जीव की हिंसा न करना - “मा हिंस्यात् सर्वभूतानि ।” करुणा भावना यह अहिंसक दयाप्रेमी आत्माका आंतरिक स्रोत है। यह स्त्रोत कभी भी सूखना नहीं चाहिए । इसलिए निरंतर दया और दया धर्म का पालन करना चाहिए । जैसी मेरी आत्मा है वैसी सब की आत्मा है । मैरे जैसे ही दूसरे की आत्मा है। इसतरह की व्यापक दृष्टि दया दृष्टि की करुणा भावना को जागृती करती है।
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