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रहित, वृन्ति और प्रवृत्तिसे आत्मा उच्च गोत्र कर्म बांधता है और इससे जो विपरीत प्रवृत्तियाँ करता है वह आत्मा नीच गोत्र कर्म बांधता है। इससे यह भी स्पष्ट हो जाता है कि प्रमोद भावना जीवको परम उपकारक है। प्रमोद भावना से जीव का महान कल्याण होता है और भवकट्टी में महान सहायता मिलती है।
गुणानुमोदना किसकी करनी चाहिये ? गुणोपासक साधक गुणग्राही दृष्टिसे गुणों की खोजमें लीन रहता है। जहाँ से भी गुणप्राप्त होवे वहाँ से गुणों का स्वीकार करने के लिए वह पुरुषार्थ करता है। लेकिन इतना उनके मनमें स्पष्ट होना चाहिए कि विश्व के सभी लोकोत्तर और लौकिक गुण धारण करनेवाले गुणी जन के पास ही गुण प्राप्त हो सकता है। इसलिए गुण प्राप्ति के लिए पंचपरमेष्ठि भगवंतो, गणधर भगवंतो, पंचाचार के साधक आचार्य भगवंतो, सूत्रार्थ के वाचनदाता, उपाध्याय भगवंतो, एवं प्रवचन प्रभावक गुरु भगवंतो, कल्याणकारक महाव्रतधारी साधु-साध्वी भगवंतो देशविरति धारक, १२ अणुव्रत के पालनहार श्रावक-श्राविकायें और मार्गानुसारी के ३५ गुण के धारकों के गुणों की भी अनुमोदना करना उपकारक हो सकता है । स्वर्गीय देव और मनुष्य जो गुणों के धारक है, उनके गुणों का संकिर्तन भी प्रमोद भावना की वृद्धि के लिए उपकारक सिद्ध हो सकता है ।
मालिक प्रति पूरी निष्ठासे कार्य करनेवाला कुत्ता, दूध देनेवाली गाय, मानव के भिन्न - भन्न प्रकार के कार्य में सहाय करनेवाला हाथी, अश्व, उंट और अन्य पशुपक्षी के स्वीकार करना भी गुणानुरागीका कर्तव्य बन जाता है । चेतनमेंसे नहीं, जड़में से अजीव से भी गुण को ग्रहण करना उपयुक्त हो सकता है। श्री नवकारमंत्र का स्मरण याने प्रमोद भावना की उपासना करने का सर्वश्रेष्ठ साधन है। नवकार मंत्र चौदह पूर्वका सार है । अर्थात् प्रमोद भावना चौदह पूर्व ज्ञान का सार हैं। जैसा नवकार मंत्र सभी शास्त्र में व्याप्त है वैसे प्रमोद भावना सभी शास्त्रोंमें व्याप्त है ।
जिस प्रकार नवकार मंत्र पापनाशक है सभी मंगलों में प्रथम मंगल है वैसे प्रमोदभावना भी सर्व पापनाशक और सर्व मंगलोमें प्रथम मंगल हैं।
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श्रीकृष्ण की गुण ग्राहिता
यादव मित्रों के साथ श्रीकृष्ण रास्ते से जा रहे थे। इस समय सभी मित्रोने मरी हुई कुत्तीको वहाँ देखा । मरी हुई कुत्तीकी दुर्गंध से परेशान होकर यादव मित्र दूर भागने लगे । इसी समय श्रीकृष्ण ने कहा कि इस मृतक कुत्तीके दंत पंक्ति की श्वेतता और उज्ज्वलता प्रभावित करती है
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