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गुणों का विकास होता है, इसलिए दुर्गुण का त्याग करके सद्गुणकी साधना करना परम कर्तव्य है। जीवन साधनामें सद्गुणकी साधना ही सबसे बड़ी साधना है और गुणानुरागी दृष्टि ही हमारे लिए महान उपकारक बन सकती है। आत्मकल्याण के लिए गुणानुरागी दृष्टि या तो प्रमोद भावना का विकास नितांत आवश्यक है । तीर्थंकर गोत्र नामकर्म उपार्जन के लिए बाल ज्ञाता धर्मसूत्र में बताया हैं उसमें शुरुआत के बोल - परमेष्ठी और ज्ञानी, ध्यानी तपस्वी के प्रमोद भाव से गुणकीर्तन के है ।
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सिद्ध परमात्मा अनंत गुणों के स्वामी है । धर्म क्षेत्र में हम ऐसा भी कह सकते है कि सभी गुण सिद्ध परमात्मा में आश्रय लेकर इकठ्ठे हुए हैं। इसलिए सिद्ध परमात्मा को ही साध्य मानकर उनके गुणों की साधना करने से हमें अमूल्य लाभ होता है । सिद्धत्व प्राप्त करना ही आत्माका अंतीम लक्ष्य है । जिस तरह शुद्ध या स्वच्छ आईने में स्वच्छ प्रतिबिंब मिलता है उसी तरह अनंत गुणी सिद्ध परमात्मा को आईना बनाकर हमारी आत्मा का प्रतिबिंब इससे प्राप्त करना चाहिए और ऐसा करने से हमें पता लगेगा कि हम कितने अपूर्ण है और सिद्ध परमात्मा कितने पूर्ण है ।
सिद्ध मंगल, सिद्धा लोगुत्तमा और सिद्धे शरणं पवज्जामि ये हमारे आदर्श है। इसे लक्ष्य बनाकर साधक साधना करेगा तो वह भी वैसा बन सकेगा । वीतराग की साधना करनेवाला बीतरागी हो सकेगा। गौतम स्वामी का राग वीतराग पर था, तो वे भी एक दिन
रागी हो गये, सर्वज्ञ हो गये। यदि उन्होने किसी रागी पर राग रखा होता तो वे भी रागी बन सकते, वीतरागी नहीं। इसलिए हमें यदि राग रखना है तो वीतरागी पर ही होना चाहिए । सर्वज्ञता वीतरागता के बिना असंभव है । इसलिए वीतरागता के गुण प्राप्त करने के लिए सर्वज्ञ का आलंबन लेना परम उपकारक सिद्ध होगा ।
गुण प्राप्त करना याने बाहर से किसी वस्तु को प्राप्त करना ऐसा अर्थ होता है। जैन दर्शन गुणों को प्रगट करने को कहता है । गुण आत्मा के भीतर ही है और हममें भी है और इन्हें प्रगट करने के प्रवृत्तिही हमारा कर्तव्य है । प्रगटीकरण की प्रक्रिया हमारी साधना का लक्ष्य होना चाहिये ।
"तेरा है सो तेरे पास, अवर सब अनेरा । "
“आप स्वभाव में रे अवधु सदा मगन में रहना ॥”
हे चेतन ! तुझमें जो उत्तम गुण है उसे प्रगट करने का पुरुषार्थ तूं स्वयं कर । दुर्गुणों का परिहार करना और सद्गुण का विकास करना तेरा लक्ष्य होना चाहिए। सुकृत्य की अनुमोदना करने से अनेक जन्मों के भवभ्रमण से मुक्ति पाने का तेरा मार्ग सरल हो जाएगा। एक आदर्श जीवन की ओर तेरी गति और प्रवृत्ति बढ़ेगी और परमशांति प्राप्त होगी ।
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