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________________ द्रव्य का लक्षण: आचार्य भट्टाकलंक देवने तत्त्वार्थ राजवार्तिक द्रव्यका लक्षण इस प्रकार बताया हैं - “जो सत् है वह द्रव्य है",१९४ सत् अर्थात जो इंद्रिय ग्राह्य अथवा अतिंद्रिय पदार्थ, बाह्य और अभ्यंतर निमित्त की अपेक्षा से उत्पाद्, व्यय और ध्रौव्य को प्राप्त होता है। तत्त्वार्थ सूत्रमें भी 'सत्' का यही लक्षण कहा है। जिसमें उत्पाद् व्यय और ध्रौव्य ये तीनों वह 'सत्' है। द्रव्य, गुण, पर्याय के आश्रित होता है ऐसा सर्वज्ञ ने कहा है।१९५ 80 गुणप्रधान जैन धर्म : संसारमें दो प्रकार के संप्रदाय हैं। १) व्यक्ति या विभूति प्रधान संप्रदाय २) गुणप्रधान संप्रदाय प्रथम प्रकार में व्यक्ति विशेष का गौरव किया जाता है। उनके गुणों का व्यक्तित्व का संकिर्तन किया जाता है और दूसरे में गुणप्रधान का ही गौरव किया जाता है और गुणों को ही प्राधान्य दिया जाता है । जैन धर्म के सुप्रसिद्ध नमस्कार महामंत्र में २४ तीर्थंकरोंमें से किसीके नाम का उल्लेख तक नहीं है और न तो इसमें साधु, उपाध्याय या आचार्य भगवंतों का नामोल्लेख हुआ है । नमस्कार महामंत्रमें विश्व के पाँच सर्वोत्तम गुणों का ही, स्थानकाही आलेखन मिलता है। नमस्कार महामंत्र के प्रथम पद नमो अरिहंताणं में अनंत अरिहंतों को नमस्कार किया गया है। अरिहंत की समझ देते हुए ज्ञानियोंने दर्शाया है कि - जिनमें उत्तरोत्तर गुणों की वृद्धि हुई है और चार घाती कर्मों (ज्ञानावरणीय कर्म, दर्शनावरणीय कर्म, मोहनीयकर्म, अंतराय कर्म) का जिन्होंने क्षय किया है वे अरिहंत है । अरि + हंत- काम-क्रोधादि अंतरिक शत्रुओंका संहार करनेवाले सभी अरिहंतों को नमस्कार किया गया है । कहने का तात्पर्य यह है कि अरिहंत गुणवाचक पद है, व्यक्तिवाचक पद नहीं है । और गुणों का संकीर्तन गुणोंका पक्षपात करना ही प्रमोद भावना कहा गया है। साधक की साधना का प्रधान उद्देश्य यह है कि - दोष एवं दुर्गुणों को नाश करना - संवर करना और गुणों की स्थापना करना -नये नये गुणों की वृद्धि करना । जैन शासनमें गुणानुरागीही सच्चा साधक है और दोषानुरागी विराधक है। गुणानुरागी शीघ्र सम्यक्त्व प्राप्त (२३१)
SR No.002297
Book TitleJain Dharm ke Navkar Mantra me Namo Loe Savva Sahunam Is Pad ka Samikshatmak Samalochan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharitrasheelashreeji
PublisherSanskrit Bhasha Vibhag
Publication Year2006
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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