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कषायों का शमन
क्रोध
मान
माया
४) माध्यस्थ भावना से
लोभ
मैत्री भावना अंतर को विशाल बनाती है । जहाँ सबको मित्र माने वहाँ क्रोध रुपी चांडाल को अवकाश ही कहाँ मिलेगा ? मान, अभिमान को दूर करने के लिए प्रमोद भावना का आश्रय ले के गुणजनों की ओर दृष्टि रखना, जिससे दूसरों के गुण देखने के बाद अपना अभिमान नष्ट हो जाता है और दीन दुःखी के प्रति करुणा की दृष्टि होने से किसीको भी ठगने की माया बीचमें नहीं आएगी और पर पदार्थ के लोभ को दूर करने के लिए माध्यस्थ भावना उपेक्षा वृत्ति सीखाएगी, याने लोभ का नाश होगा।
४ संज्ञा दूर करने के लिए ४ भावना
१) आहार संज्ञा
२) निद्रा संज्ञा
३) भय संज्ञा
४) मैथुन ( परिग्रह ) संज्ञा
माध्यस्थ भावना
मैत्री भावना आहार संज्ञा दूर करने के लिए सहायक है। प्रमोद भावना गुणानुरागी होने से निद्रा को दूर करेगी। कारुण्य भावना सभी के प्रति दयालु होने से भय संज्ञा दूर हो जाती है और माध्यस्थ भावना से मैथुन (परिग्रह) की संज्ञा दूर होती है।
४ अधर्म को दूर करने के लिए ४ भावना
१) हिंसा
२) झूठ
३) चोरी
भावना
१) मैत्रीभावना से
२) प्रमोदभावना से
३) कारुण्य भावना से
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मैत्री भावना प्रमोद भावना
कारुण्यभावना
मैत्री भावना प्रमोद भावना
कारुण्यभावना
४) अब्रह्म (परिग्रह)
माध्यस्थ भावना
जीवमात्र के प्रति मैत्री हो तो हिंसा दूर होगी। गुणवान के प्रति प्रमोद वृत्ति होगी तो झूठ बोलना रुकेगा । सबके प्रति करुणा होगी, तो चोरी करने से रुकेगा । जब माध्यस्थ भावना होगी तो अब्रह्म (परिग्रह) से छूटकारा होगा । १७५
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