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संसार के सभी जीवों के सुखदु:ख के प्रति हमारी दृष्टि कैसी होनी चाहिये यह बात इन चारों भावनाओंसे हम जान सकते हैं। इसलिए जैन धर्म की प्रार्थनामें और बड़ी शांतिमें इन भावनाओं का बड़े आदर से उल्लेख किया गया है।
१) शिवमस्तु सर्वजगतः १) मैत्रीभावना २) परहितनिरता भवन्तु भूतगणा: २) प्रमोदभावना ३) दोषाः प्रयान्तु नाशं ३) कारुण्यभावना ४) सर्वत्र सुखी भवन्तु लोकः ४) माध्यस्थ भावना अर्थ - १) सारे विश्वका कल्याण होवें - मैत्री भावना २) सभी जीव दूसरों के हितमें रत होवो - प्रमोदभावना ३) सभी के पाप दोष नष्ट होवो
कारुण्यभावना ४) सभी ओर लोग सुखी होवो
माध्यस्थभावना अर्थ - १) सर्वेऽपि सन्तु सुखिनः
मैत्रीभावना २) सर्वे सन्तु निरामया
प्रमोदभावना ३) सर्वे भद्राणि पश्यन्तु
करुणाभावना ४) मा कश्चित दुःखमागभवेत्
माध्यस्थभावना
अर्थ -
१) सभी जीव सुखी होवे
मैत्रीभावना २) सभी जीव निरोगी होवे __. प्रमोदभावना ३) सभी जीवों का कल्याण होवो - करुणाभावना ४) कोई भी जीव दुःखी न होवे - माध्यस्थभावना१७३ __इस प्रकार बृहद्शान्ति स्तोत्र आदि में भी जो प्रार्थना स्वरुपात्मक श्लोक हैं उसमें भी गूढार्थ रूप चारों ही भावनाओं समाविष्ट हैं। इन श्लोकों के अर्थ भी साथ में दिये हैं ।इससे चारों ही भावनाओं के विषय कैसे हो सकते हैं उसका स्पष्ट खयाल आ जाता है।
चार भावना - अरिहंतादि ४ मंगल, लोकोत्तम, शरण
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