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________________ प्रकारकी परिस्थिति उत्पन्न होगी, तो मैं इसका त्याग करता हूँ । दूसरे शब्दोंमे कहा जा सकता है कि - मनमें अपवाद की कल्पना करके जो त्याग किया जाता है वह साकार प्रत्याख्यान है । ६) निराकार : यह प्रत्याख्यान किसी प्रकार का अपवाद रखें बिना किया जाता है । उस प्रत्याख्यानमें दृढ़ मनोबल की अपेक्षा होती है साकार प्रत्याख्यान में सभी प्रकार के अपवाद व्यवहार में लाये जा सकते है लेकिन अनाकार प्रत्याख्यान में अपवाद व्यवहारमें नही लाये जा सकते हैं। नक्षत्र आदि का विचार किये बिना स्वेच्छा से उपवास आदि करना निराकार प्रत्याख्यान है । ७) परिणामव्रत : श्रमण भिक्षा के लिए जाते समय या आहार ग्रहण करते समय यह प्रतिज्ञा करता है कि मैं आज इतना ही ग्रास ग्रहण करूँगा या तो यह विचार करता कि अमुक प्रकार का आहार प्राप्त होगा तो ही मैं आहार, ग्रहण करूँगा, अन्यथा नहीं । - - ८ ) निरवशेष : असण, पान, खादिम और स्वादिम इन चारों प्रकार के आहार का पूर्ण रूपसे परित्याग करना इसे निरवशेष प्रत्याख्यान कहा जाता है । वसुनंदीजी का कहना है कि - यह प्रत्याख्यान यावत् जीवन के लिए होता है। श्वेतांबर आगम साहित्यमें इस प्रकार क कोई वर्णन नहीं है । ९) सांकेतिक : जो प्रत्याख्यान संकेत पूर्वक किया जाए वह सांकेतिक प्रत्याख्यान है । जैसे मुठी बांधकर या किसी वस्त्रमें गाँठ लगाकर जब तक मैं मुठी या गाँठ नहीं खोलूँगा तब तक कोई भी वस्तू मुख में नहीं डालूँगा । ऐसा भी कहा गया है कि इस प्रत्याख्यानसे साधक अपनी सुविधा के अनुसार प्रत्याख्यान करता है, वह सांकेतिक प्रत्याख्यान कहलाता है । मूलाचारमें इसका नाम श्रद्धानगत है । - - १०) अद्धा : समय विशेष की मर्यादा निश्चित करके प्रत्याख्यान करना । इस प्रत्याख्यान के (२१३)
SR No.002297
Book TitleJain Dharm ke Navkar Mantra me Namo Loe Savva Sahunam Is Pad ka Samikshatmak Samalochan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharitrasheelashreeji
PublisherSanskrit Bhasha Vibhag
Publication Year2006
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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