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भी दो उपभेद हैं। १) देशउत्तरगुण प्रत्याख्यान और ( २ ) सर्व उत्तरगुण प्रत्याख्यान | गृहस्थों तीन गुणव्रत और चार शिक्षाव्रत ये सात उत्तरगुण प्रत्याख्यान हैं । क श्रमणों और श्रमणोपासक दोनों के लिए दशप्रकार के प्रत्याख्यान है। भगवती सूत्र १४५, स्थानांगवृत्ति १४६, आवश्यक निर्युक्ति१४७ और मुलाचार १४८ में दशप्रत्याख्यानों का वर्णन हैं जिसका संक्षिप्त सार इस प्रकार है ।
१ ) अनागत :
पर्युषण आदि पर्वमें जो तप आदि करना चाहिये वह तप पहले कर लेना इसे अनागत कहते हैं। पर्व के समय वृद्ध, रुग्ण, तपस्वी आदि की सेवा सहजरूप से हो सके इसलिए तप पहले करने का आदेश दिया है। मूलाचार के टीकाकार वसुनंदी ने लिखा है - चतुर्दशी को किया जानेवाला तप त्रयोदशी को करना ।
२) अतिकांत :
जो तप पर्व के दिनों में करना चाहिए वह तप सेवा आदिका प्रसंग उपस्थित होने से न कर सके तो उसे बादमें अपर्व के दिनोंमें करना अतिकांत हौ । वसुनंदी के अनुसार चतुर्दशीको किया जानेवाला उपवास प्रतिपदा को करना ।
३) कोटिसहित :
जो पूर्वत चल रह हो, उस तपको बिना पूर्ण किये ही अगला तप प्रारंभ कर देना इसे कोटि सहित कहा गया है। जैसे कि - उपवास का पारणा किये बिना ही अगलातप प्रारंभ करना इस तपमें शक्ति की अपेक्षा प्रगट की गई है । वसुनंदी के अनुसार यह संकल्प समन्वित प्रत्याख्यान है। जैसे- अगले दिन स्वाध्यायबेला पूर्ण होने पर यदि शक्ति रही तो मैं उपवास करूंगा, अन्यथा नहीं करूँगा ।
४) नियंत्रित :
जिस दिन प्रत्याख्यान करनेका विचार हो उस दिन रोग आदि विशेष बाधाएं उपस्थित जाएं तो भी उन बाधाओं की परवाह किये बिना जो मनमें प्रत्याख्यान धारण किया है वह प्रत्याख्यान अवश्य करना। प्रस्तुत प्रत्याख्यान चतुर्दश पूर्वधारी, जिनकलप और दशपूर्वधारी श्रमण करते थे । वर्तमान में यह प्रत्याख्यान नहीं है ।
५) साकार प्रत्याख्यान :
इस प्रत्याख्यानमें साधक मनमें एक विशेष साकार की कल्पना करता है कि इस
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