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होकर सूक्ष्म शरीर से संबंध स्थापित किया जा सकता है। ___कायोत्सर्ग से श्वास सूक्ष्म होता है। शरीर और मन के बीच में श्वास है। शास्त्रकारोने श्वासक के पांच प्रकार बताये है -
१) सहजश्वास २) शांत श्वास ३) उखड़ी श्वास ४) विक्षिप्त श्वास और ५) तेज श्वास
ज्ञानियों ने दर्शाया है कि - साधक पहले अभ्यासमें गहरा और लंबा श्वास लेता है। दूसरे अभ्यास में लयबद्ध श्वास लिया जाता है। तीसरे अभ्यासमें सूक्ष्म, शांत
और जमे हुए श्वास का अभ्यास करता है। चतुर्थ अभ्यास में सहज कुंभक की स्थिती होती है। प्राणायाम और ध्यान से इस स्थिती का निर्माण किया जाता है। प्राणायाम का सीधा असर शरीर पर होता है, किंतु मनोग्रंथी पर चोट करने के लिए मनका संकल्पबद्ध होना आवश्यक है। श्वासकी मंदता से शरीर निष्क्रिय हो जाता है। और प्राण शांत हो जाते हैं। मन निर्विचार हो जाता है और अंतरमानसमें तीव्रतम वैराग्य जागृत हो जाता है। श्वास के स्थिर होनेपर मन की चंचलता भी नष्ट हो जाती है। श्वास की निष्क्रियता मन की शांति और समाधी है। जब हमें क्रोध आता है उस समय हमारी श्वास की गति तीव्र हो जाती है और ध्यान में श्वास की गति शांत होने से उसमें मन की स्थिरता होती है।
_ 'प्रवचन सारोद्धार' आदि ग्रंथोमें कायोत्सर्ग के १९ दोष वर्णित हैं। १) घोटक दोष २) लता दोष ३) स्तंभ कुड्य दोष ४) माल दोष ५) शबरी दोष ६) वधु दोष ७) निगड़ दोष ८) लम्बोत्तर दोष ९) स्तन दोष १०) उर्द्धिका दोष ११) संयती दोष १२) खलीन दोष १३) वायस दोष १४) कपित्य दोष १५) शीर्षोत्कम्पित दोष १६) मूक दोष १७) अंगुलिका भ्रू दोष १८) वारूणी दोष और प्रज्ञा दोष १३७ ...।
बौद्ध धर्ममें आचार्य शांतिरक्षितने बौद्धाचार्यावतार ग्रंथ में १३८लिखा है - सभी देहधारियों को जिस प्रकार सुख हो, वैसे ही यह शरीर मैंने न्यौछावर कर दिया है। वे चाहे इसकी हत्या करें, निंदा करे, या इस पर धूल फेंके, चाहे खेलें, चाहे हँसे, चाहे विलास करें, मुझे इसकी क्या चिंता ? क्योंकि, मैंने शरीर उन्हें ही दे डाला है। तथागत बुद्ध ने ध्यान साधन पर बल दिया। ध्यान साधना बौद्ध परंपरामें अतीतकाल से चली आ रही है। विपश्यना आदि में भी देह के प्रति ममत्व हटाने का उपक्रम मिलता है।
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