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दिगंबर परंपराके आचार्य अमितगतिने यह विधान किया है कि देवसिक कायोत्सर्ग में १०८ और रात्रिके कायोत्सर्ग में ५४ उच्छवासों का ध्यान करना चाहिये एवं अन्य कायोत्सर्ग में २७ उच्छवासों का ध्यान करना चाहिए । १३२ सत्ताईस उच्छवासों में नमस्कार मंत्र की नौ आवृत्तियाँ होती है क्योंकि तीन उच्छवासों में एक नमस्कार महामंत्र का ध्यान किया जाता है । नमो अरिहंताणं, नमो सिद्धाणं, एक उच्छवासमें नमो आयरियाणं, नमो उवज्झायाणं, दूसरे उच्छवासमें तथा नमो लोए सव्व साहूणं तीसरे उच्छावासमें - इस प्रकार तीन उच्छवासोंमे एक नमस्कार महामंत्र का ध्यान पूर्ण होता है । आचार्य अमितगति का कहना है कि श्रमण को दिन और रातमें कुल २८ बार कायोत्सर्ग करना चाहिए। १३३ स्वाध्याय कालमें १२ बार, वंदनकाल में ६ बार, प्रतिक्रमण कालमें ८ बार, योगभक्ति कालमें २ बार, इस प्रकार कुल २८ कायोत्सर्ग करना चाहिए।
श्वेतांबर और दिगंबर दोनों परंपराओके साहित्य में यह स्पष्ट उल्लेख मिलता है कि - श्रमण साधकों के लिए कायोत्सर्ग पर विशेष जोर दिया गया है। उत्तराध्ययन सूत्र के श्रमण समाचारी अध्ययनमें १३४ और दशवैकालिक चूलिकामें १३५ श्रमणको पुन: पुन: कायोत्सर्ग बताया है। कायोत्सर्गमें मानसिक एकाग्रता, सर्वप्रथम आवश्यक है। कायोत्सर्ग अनेक प्रयोजनोंसे किया जाता है। लेकिन क्रोध, मान, माया, लोभ का उपशमन कायोत्सर्ग का मुख्य प्रयोजन है। अमंगल विघ्न और बाधा के परिहार के लिए भी कायोत्सर्ग का विधान प्राप्त होता है। ___ कायोत्सर्ग की प्रक्रिया कष्टप्रद नहीं है। कायोत्सर्ग से शरीर को पूर्ण विश्रांति प्राप्त होती है और मनमें अपूर्व शांतिका अनुभव होता है। इसलिए कायोत्सर्ग लंबे समय तक किया जा सकता है । कायोत्सर्ग में मनको श्वासमें केंद्रित किया जाता है । इससे कालमान श्वास गिनती से भी किया जाता है।
___ कायोत्सर्ग का प्रधान उद्देश्य है - आत्मा का सानिध्य प्राप्त करना और सहज गुण है मानसिक संतुलन बनाओ रखना । मानसिक संतुलन बनाओ रखनेसे बुद्धि निर्मल होती है और शरीर पूर्ण स्वस्थ होता है। आचार्य भद्रबाहुने कायोत्सर्ग के अनेक फल बताये हैं । १३६ को देह जाड्य बुद्धि - श्लेष्म आदि के द्वारा देहमें जड़ता आती है तो कायोत्सर्ग से श्लेष्म आदि के दोष नष्ट हो जाते हैं । इसलिए उनसे उत्पन्न होनेवाली जड़ता भी समाप्त हो जाती है। २) मति जाड्य बुद्धि : कायोत्सर्ग में मनकी प्रवृत्ति केंद्रित हो जाती है। उससे चित्त एकाग्र होता है। बौद्धिक जड़ता
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