________________
अभिभव कायोत्सर्ग का काल जघन्य अंतर्महुर्त और उत्कृष्ट एक वर्ष का है। उदा. बाहुबलीने एक वर्ष तक यह कायोत्सर्ग किया था। १२८
दोष विशुद्धि के लिए जो कायोत्सर्ग किया जाता है वह कायोत्सर्ग दैवसिक, रात्रिक, पाक्षिक, चातुर्मासिक और सांवत्सारिक रुपसे पाँच प्रकार का है।
षड़ावश्यक में जो कायोत्सर्ग है उसमें चतुर्विंशतिस्तव का ध्यान किया जाता है। चतुर्विंशति स्तवमें सात श्लोक और अट्ठाईस चरण हैं। १२९ एक उच्छवासमें एक चरण का ध्यान किया जाता है। एक चतुर्विंशति स्तवका ध्यान २५ उच्छवासोंमें संपन्न होता है । प्रथम श्वास लेते समय मनमें लोगस्स उज्जोयगरे कहा जाएगा और श्वास को छोड़ते समय धम्मतित्थयरे जिणे कहा जाएगा। द्वितीय श्वास लेते समय अरिहंते कित्तईसं और छोड़ते समय चऊविसंपि केवली कहा जाएगा। इस प्रकार चतुर्विंशतिस्वत का कायोत्सर्ग होता है।
'प्रवचन सारोद्धार' १३० में और विजयोदयावृत्ति में १३१ कायोत्सर्ग का ध्येय परिमाण और कालमान इस प्रकार किया गया है।
प्रवचनसारोद्धार -
चतुर्विंशतिस्तव श्लोक चरण उच्छवास १) देवासिक ४ २५ १०० १०० २) रात्रिक
१२ १/२ ५० ३) पाक्षिक १२
३०० ४) चातुर्मासिक २० १२५ ५०० ५०० ५) सांवत्सरिक ४०
२५२ १००८ १००८
विजयोदया
चतुर्विंशतिस्तव श्लोक चरण उच्छवास १) दैवसिक ४ २५ १०० रात्रिक
१२१/२ ५० ३) पाक्षिक १२ ७५ ३०० ३०० ४) चातुर्मासिक १६ १०० ४०० ४०० ५) सांवत्सरिक २० १२५ ५०० ५०० ___ प्रवचनसारोद्धार और विजयोदयावृत्तिमें जो उच्छवास संख्या कायोत्सर्ग की दी गई है, उसमें एक रुपता नहीं है।
(२०७)
७५
३००
१००
५०