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________________ किया जाता है, जैसे- उपधिका त्याग करना भत्तपान आदि का त्याग करना, पर भाव कायोत्सर्ग में तीन बातें आवश्यक है - कषाय व्युत्सर्ग, संसार व्युत्सर्ग और कर्म व्युत्सर्ग ! कषाय व्युत्सर्ग में चारों प्रकार के कषायों का परिहार किया जाता है । क्षमा के द्वारा क्रोध को, विनय के द्वारा मान को, सरलतासे माया को और संतोष से लोभ को जीता जाता है। संसार व्युत्सर्ग में संसार का परित्याग किया जाता है। संसार चार प्रकार का है - द्रव्य संसार, क्षेत्र संसार, काल संसार और भाव संसार । १२४ द्रव्य संसार - चार गतिरुप है । नारकी, तीर्थंच, मनुष्य और देव ये चार गति हैं । १२५ क्षेत्र संसार - अध:, उर्ध्व और मध्य लोकरूप है। कालसंसार - एक समय से लेकर पुद्गल परावर्तन काल तक है। भावसंसार - जीव का विषयासक्तिरुप भाव है । जो संसार भ्रमण का मूल कारण है । द्रव्य, क्षेत्र, काल संसार का त्याग नहीं किया जा सकता है। आचारांग सूत्र में कहा है - जो इंद्रियों के विषय है वही वस्तुतः संसार है और उनमें आसक्त हुआ आत्मा संसारमें परिभ्रमण करता है । १२६ आगम साहित्य में यत्रतत्र ‘संसारकंतारे' शब्द का उपयोग हुआ है - जिसका अर्थ है - संसार के चार गतिरुप किनारे हैं। संसार - परिभ्रमण के जो मूल कारण है उन मूल कारणों का त्याग करना। मिथ्यात्व, अव्रत, प्रमाद, कषाय और अशुभ योग का परित्याग करना है । 'संसार व्युत्सर्ग' है । अष्ट प्रकार के कर्मोंको नष्ट करने के लिए जो कायोत्सर्ग किया जाता है उसे व्युत्सर्ग कहते हैं । प्रयोजनकी दृष्टि से कायोत्सर्ग के दो भेद किये गये हैं । १) चेष्टा कायोत्सर्ग २ ) अभिभव कायोत्सर्ग १२७ कायोत्सर्ग : दोष विशुद्धि के लिए किया जाता है। जब श्रमण शौच, शिक्षा आदि कार्यों के लिए बाहर जाता है तथा निद्रा आदि में प्रवृत्ति होती है। उस में दोष लगने पर उसकी शुद्धि के लिए प्रस्तुत कायोत्सर्ग किया जाता है । अभिभव कायोत्सर्ग : दो स्थितियों में किया जाता है । प्रथम दीर्घकाल तक आत्मचिंतन के लिए या आत्मशुद्धिके लिए मनको एकाग्र कर कायोत्सर्ग करना और दूसरा संकट आनेपर जैसे - विप्लव, अग्निकांड, दुर्भिक्ष आदि । चेष्टा कायोत्सर्ग का काल उच्छवास आधारित है । यह कायोत्सर्ग विभिन्न स्थितियों में (आठ) सत्ताइस तीन सौ या ५००, और १००८ उच्छवास तक किया जात है। (२०६)
SR No.002297
Book TitleJain Dharm ke Navkar Mantra me Namo Loe Savva Sahunam Is Pad ka Samikshatmak Samalochan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharitrasheelashreeji
PublisherSanskrit Bhasha Vibhag
Publication Year2006
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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