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शारिरिक स्थिति
१) उत्सृत - उत्सृत
२) उत्सृत
३) उत्सृत - निषण्ण
४) निषण्ण उत्सृत ५) निषण्ण
६) निषण्ण - निषण्ण
७) निषण्ण - उत्सृत ८ ) निषण्ण
खड़ा
खड़ा
खड़ा
बैठा
बैठा
बैठा
लेटा
लेटा
मानसिक विचारधारा
धर्म - शुक्लध्यान
न धर्म - शुक्ल, न आर्द- रौद्र किंतु चिंतनशून्य दशा
आर्त-रौद्र ध्यान
धर्म - शुक्ल ध्यान
न धर्म - शुक्लध्यान, न आर्त-रौद्र किंतु
चिंतनशून्य दश
आर्त- रौद्रध्यान
(२०५)
धर्म - शुक्लध्यान
न धर्म - शुक्ल, न आर्त - रौद्र किंतु
चिंतन शून्य दशा
आर्त - रौद्र ध्यान
९) निषण्ण - निषण्ण
लेटा
कायोत्सर्ग खडे होकर, बैठकर, और लेटकर - तीनों अवस्थाओंमें किया जाता है। खड़ी मुद्रामें कायोत्सर्ग करने की रीति इस प्रकार है। दोनों हाथों को घूटनोंकी ओर लटकालें, पैरों को सम रेखामें रखें, एडियाँ, कायोत्सर्ग करनेवाला पद्मासन या सुखासन से बैठे । हाथों को या तो घूटनों पर रखें या बाईं हथेली पर दायी हथेली रखकर उन्हें अंक में रखें । लेटी हुई मुद्रामें कायोत्सर्ग करनेवाला सिर से लेकर पैर तक के अवयवों को पहले ताने फिर स्थिर करें। हाथ पैर को सटायें हुए न रखें। इन सभी में अंगोंका स्थिर और शिथिल होना आवश्यक है ।१२२ खड़े होकर कायोत्सर्ग करने की एक विशेष परंपरा रही है क्योंकि, तीर्थंकर प्राय: इसी मुद्रामें कायोत्सर्ग करते है । आचार्य अपराजितने लिखा कायोत्सर्ग करनेवाला साधक शरीर से निष्क्रिय होकर खंभे की तरह खड़ा हो जाए। दोनों बाहुओं को घुटनों की ओर फैला दे । प्रशस्त ध्यानमें लीन हो जाए। शरीर को एकदम अकड़ा कर न खड़ा रखें और न एकदम झुकाकर ही वह सम मुद्रामें खड़ा रहे । कायोत्सर्ग में कष्टों और परिषहोंको समभाव से सहन करें । कायोत्सर्ग जिस स्थानपर किया जाए वह स्थान एकांत, शांत और जीवजंतुओं से रहित हो ।
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द्रव्य कायोत्सर्ग, भाव कायोत्सर्ग की ओर बढ़ने का एक उपक्रम है । द्रव्य स्थूल हैं, स्थूलतासे सूक्ष्मता की ओर बढ़ा जाता है । द्रव्य कायोत्सर्ग में बाह्यवस्तुओं का परित्याग