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________________ क़ायोत्सर्ग कहते हैं। इस प्रकार का कायोत्सर्ग सभी प्रकार के दुःखों को नष्ट करनेवाला है । १२० द्रव्य और भाव के भेद को समझने के लिए आचार्योंने कायोत्सर्ग के चार प्रकार बताये हैं । १) उत्थित - उत्थित उत्थित-निविष्ट ३) उपविष्ट - उत्थित ४) उपविष्ट - निविष्ट १) उत्थित - उत्थित - इस कायोत्सर्ग मुद्रामें जब साधक खड़ा होता है तो उसके साथ ही उसके अंतर्मानसमें चेतना भी खड़ी हो जाती है । वह अशुभ ध्यान का परित्याग कर प्रशस्त ध्यान में लीन हो जाता है । वह प्रथम श्रेणिका साधक है । उसका तन भी उत्थित है और मन भी उत्थित है । २) उत्थित-निविष्ट : कुछ साधक साधना की दृष्टि से आँख मूंदकर खड़े हो जाते हैं । वे शारीरिक दृष्टि से खड़े दिखाई देते हैं किंतु मानसिक दृष्टि से उनमें कुछ भी जागृति नहीं होती उनका मन संसार के विविध पदार्थोंमें उलझा रहता है। आर्त और रौद्र ध्यान की धारामें वह अवगाहन करता है । नसे खड़े होने पर भी उनका मन बैठा है। अतः उत्थित होकर भी वह साधक निविष्ट है। ३) उपविष्ट - उत्थितः कभी-कभी शारीरिक अस्वस्थता अथवा वृद्धावस्था के कारण कार्योत्सर्ग के लिए साधक खड़ा नहीं हो सकता । वह शारीरिक सुविधा के लिए पद्मासन सुखासन लगाकर कार्योत्सर्ग करता है । तन की दृष्टि से वह बैठा है, किंतु मनमें तीव्र शुद्ध भाव धारा प्रवाहित हो रही है, जिसके कारण बैठने पर भी वह मनसे उत्थित है । शरीर भले ही बैठा है किंतु साधक का मन उत्थित है । (खड़ा है) - ४) उपविष्ट-निविष्ट : कोई साधक शारिरिक दृष्टि से समर्थ होने पर भी आलस्य के कारण खड़ा नहीं होता, बैठे - बैठे ही वह कायोत्सर्ग करता है । तन की दृष्टि से वह बैठा हुआ है। और भाव की दृष्टी से उसमें जागृति नहीं है। उसका मन सांसारिक विषय वासना में या राग-द्वेषमें फंसा हुआ है । उसका तन और मन दोनों ही बैठे हुए हैं। कायोत्सर्ग के इन चारों प्रकारों में प्रथम और तृतीय प्रकारका कायोत्सर्ग ही है । इन कायोत्सर्ग के द्वाराही साधक साधना के महान लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है। शारीरिक अवस्थिति और मानसिक चिंतनधारा की दृष्टि से आचार्य भद्रबाहु ने आवश्यक निर्युक्तिमें १२१ कायोत्सर्ग के नौ प्रकार बताये हैं । ( २०४)
SR No.002297
Book TitleJain Dharm ke Navkar Mantra me Namo Loe Savva Sahunam Is Pad ka Samikshatmak Samalochan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharitrasheelashreeji
PublisherSanskrit Bhasha Vibhag
Publication Year2006
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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