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उसे बाहर नहीं निकाला गया, मन में ही छिपा कर रखा गया तो उसका विष अंदर ही चला जायेगा और वह विष साधक के जीवन को बर्बाद कर देगा। बौद्ध धर्म में प्रवारणा:
बौद्ध धर्म में प्रतिक्रमण शब्द का प्रयोग नहीं हुआ है, उसके स्थान पर प्रतिकर्म, प्रवारणा और पापदेशना, प्रभृति आदि शब्दों का प्रयोग हुआ है। उदान में बुद्धने कहा जीवन की निर्मलता एवं दिव्यता के लिए पापदेशना आवश्यक है। पाप के आचरण की आलोचना करने से व्यक्ति पाप के भार से हल्का हो जाता है। १०५ वर्षावासमें क्या - क्या दोष लगे हैं ? यह प्रवारणा है। इसमें दुष्ट, श्रुत, परिशंकित अपराधों का परिर्माजन किया जाता है, जिससे परस्पर विनय का अनुमोदन होता है ।१०६
बोधिचर्यावतार १०७ नामक ग्रंथमें इसका वर्णन है। इसमें आचार्यशांतिदेवने लिखा है - रात्रिमें तीन बार, दिनमें तीन बार पाप देशना और बोधिपरिणामना की आवृत्ति करनी चाहिए, जिससे अनजाने में हुई स्खलानाओं का शमन हो जाता है । संघके समक्ष जो प्रवारणा है उसकी तुलना वर्तमानमें प्रचलित सामुहिक प्रतिक्रमण के साथ जैन धर्मने की है। प्रतिक्रमण और संध्या:
वैदिक परंपरामें प्रतिक्रमण की तरह संध्याका विधान है। यह एक धार्मिक अनुष्ठान है । जो प्रात: और सायंकाल दोनों समय किया जाता है। संध्या का अर्थ है उत्तम प्रकार से ध्यान करना । कृष्णयर्जुवेदमें एक मंत्र है कि मेरे मन, वाणी और शरीर से जो भी दूराचरण हुआ हो मैं उसका विसर्जन करता हूँ।१०८ ___ इस प्रकार वैदिक परंपरामें संध्याके द्वारा आचरित पापों के क्षय के लिए प्रभु से अभ्यर्थना की जाती है। यह एक दृष्टि से प्रतिक्रमण से ही मिलताजुलता रुप है।
पारसी धर्म में भी पाप को प्रगट करने का विधान है। खोरदेह अवस्ता पारसी धर्म का मुख्य ग्रंथ है। उसमें लिखा है कि - जो भी पाप मुझसे ज्ञात अथवा अज्ञात रूपसे हुए है, उन दुष्कृत्योंको मैं सरल हृदय से प्रकट करता हूँ। उन सबसे अलग होकर पवित्र होता हूँ।१०९
इसाई धर्म के प्रणेता महात्मा येशुने पाप को प्रकट करना आवश्यक माना है। इस तरह पाप को प्रकट कर दोषोंसे मुक्त होने का उपाय बताया है। यह प्रतिक्रमण से मिलताजुलता है।
प्रतिक्रमण जीवन शुद्धि का श्रेष्ठतम प्रकार है। किसी धर्म में उसकी विस्तार से चर्चा है तो किसी में संक्षिप्त में । पर यह सत्य है कि सभी ने उसको आवश्यक माना है।
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