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________________ दोषोंका प्रतिक्रमण करना यह सांवत्सरिक प्रतिक्रमण है। यहाँ पर सहज जिज्ञासा हो सकती है कि - जब साधक प्रतिदिन प्रात: सायं नियमित प्रतिक्रमण करता है, फिर पाक्षिक, चातुर्मासिक और सांवत्सारिक प्रतिक्रमण की क्या आवश्यकता है ? समाधान है - प्रतिदिन मकान की सफाई की जाती है। तथापि पर्व दिनोंमें विशेष सफाई की जाती है। वैसे ही प्रतिदिन प्रतिक्रमण में अतिचारों की आलोचना की जाती है, पर पर्व दिनोंमें विशेष रुप से जागरुक रहकर जीवन का निरीक्षण, परीक्षण और पापका प्रक्षालन किया जाता है। स्थानांग १०३ में प्रतिक्रमण के छह प्रकार अन्य दृष्टियों से प्रतिपादित हैं। वे इस प्रकार १) उच्चार प्रतिक्रमण - विवेकपूर्वक पुरीषत्याग, मल परठ कर आने के समय मार्ग में गमनागमन संबंधी जो दोष लगते हैं, उनका प्रतिक्रमण करना। २) प्रस्रवणप्रतिक्रमण - विवेकपूर्वक मूत्रको परठने के पश्चात् इर्या का प्रतिक्रमण करना। ३) इत्वर प्रतिक्रमण - वैवातिक, रात्रिक आदि स्वल्पकालीन प्रतिक्रमण करना। ४) यावत्कथिक प्रतिक्रमण - महाव्रत आदि जो यावत्काल के लिए ग्रहण किये जाते हैं अर्थात् सपूर्ण जीवन के लिए पाप से निवृत्त होने का जो संकल्प किया जाता है, वह यावत्कथित प्रतिक्रमण है। ५) यत्किंचित् - मिथ्याप्रतिक्रमण - सावधानीपूर्वक जीवनयापन करते हुए भी प्रमाद अथवा असावधानी से किसी भी प्रकार असंयमरुप आचरण हो जाने पर उसी क्षण उस भूल को स्वीकार कर लेना और उसके प्रति पश्चाताप करना। ६) स्वप्नान्तिक प्रतिक्रमण - स्वप्नमें कोई विकार - वासना - रुप कुस्वप्न देखनेपर उसके संबंधमें पश्चाताप करना। ये जो छह प्रकार प्रतिक्रमण के प्रतिपादित किये हुए हैं, इनका मुख्य संबंध श्रमण की जीवनचर्या से है। ____संक्षेपमें जिनका प्रतिक्रमण करना आवश्यक है, उनका संक्षेपमें वर्गीकरण इस प्रकार हो सकता है - २५ मिथ्यात्व, १४ ज्ञानातिचार और अठराह पापस्थानों का प्रतिक्रमण सभी साधकों के लिए आवश्यक है। दूसरी बात पांच महाव्रत, मन, वाणी, शरीरका असंयम, गमन, भाषण, याचना, ग्रहण-निक्षेप एवं मूल-मूत्र विसर्जन आदि से संबंधित दोषों का प्रतिक्रमण भी श्रमण साधकों के लिए आवश्यक हैं। पांच अणुव्रतों, तीन गुणव्रतों और चार (१९९)
SR No.002297
Book TitleJain Dharm ke Navkar Mantra me Namo Loe Savva Sahunam Is Pad ka Samikshatmak Samalochan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharitrasheelashreeji
PublisherSanskrit Bhasha Vibhag
Publication Year2006
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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