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के साथ संयम का पालन करना प्रतिचारणा है । अर्थात् संयम-साधनामें अग्रसर होना प्रतिचारणा है। ३) प्रतिहारणा:___ साधक को साधना के पथ पर मुस्तैदी, से अपने कदम बढ़ाते समय उसके पंथमें अनेक प्रकार की बाधाएँ आती हैं। कभी असंयम का आकर्षण उसे साधनाझसे विचलित करना चाहता है, तो कभी अनुकूल और प्रतिकूल परिस्थितियाँ उत्पन्न होती है। यदि साधक परिहारणा (प्रतिहारणा) न रखें तो वह पथभ्रष्ट हो सकता है। इसलिए वह प्रतिपल - प्रतिक्षण अशुभयोग, दुर्ध्यान और दुराचरणोंका त्याग करता है। यही परिहारणा है । ४) वारणा -
वारणा का अर्थ निषेध (रोकना) है। साधक विषय, कषायोंसे अपने आपको रोककर संयम - साधना करते हुए ही मोक्ष प्राप्त कर सकता है। इसलिए विषय-कषायों से निवृत्त होने के लिए प्रतिक्रमण अर्थ में वारणा शब्द का प्रयोग हुआ है। ५) निवृत्ति -
निवृत्ति९६ - का जैन साधनामें अत्यंत महत्त्व रहा है। सतत सावधान रहने पर भी कभी प्रमाद के वश अशुभ योगोंमें उसकी प्रवृत्ति हो जाए तो उसे शीघ्र ही शुभमें आना चाहिए। अशुभसे निवृत्त होने के लिए ही यहाँ प्रतिक्रमण का पर्यायवाची शब्द निवृत्ति आया है।
६) निन्दा - ____साधक अन्तर्निरीक्षण करता रहता है। उसके जीवन में जो भी पापयुक्त प्रवृत्ति हुई हो, शुद्ध हृदयसे उसे उन पापोंकी निंदा करनी चाहिए । स्वनिंदा जीवन को मांजने के लिए है। उससे पापों के प्रति मन में ग्लानि पैदा होती है और साधक यह दृढ़ निश्चय करता है कि जो पाप मैंने असावधानी से किये थे, वे अब भविष्यमें नहीं करूंगा। इस प्रकार पापोंकी निंदा करने के लिए प्रतिक्रमण के अर्थ में निन्दा शब्द का उपयोग हुआ है। ९७
७) गर्दा -
निन्दा अपने आपकी की जाती है, उसके लिए साक्षी की आवश्यकता नहीं होती और गर्दा गुरुजनों के समक्ष की जाती है। गुरुओं के समक्ष निःशल्य होकर अपने पापों को प्रकट कर देना बहुत ही कठिन कार्य है। जिस साधक में आत्मबल नहीं होता, वह गर्दा नहीं कर