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साधक चाहे अनुकूल स्थितिमें हो, चाहे प्रतिकूल स्थिति में हो, चाहे सम्मान मिले चाहे तिरस्कार मिले, चाहे सिद्धिके संदर्शन हो, चाहे असिद्धि प्राप्त हो, तो भी वह सभी स्थितियों म रहता है।
श्रीकृष्णने अर्जुन से कहा - "जो सुख - दुःखमें समभाव रखता है, जो इंद्रियोंके विषय सुखमें आकुल-व्याकूल नहीं होता, वही मोक्ष / अमृतत्व के अधिकारी है । ६८ गीता के अठारहवें अध्यायमें श्रीकृष्णने बहुत ही स्पष्ट शब्दोंमें कहा- जो समत्व भावमें स्थित होत है, वही मेरी परम भक्ति को प्राप्त कर सकता है । ६९ इस प्रकार गीतामें समत्वयोग का स्वर यत्र-तत्र मुखरित हुआ है ।
आज विश्व में समत्वयोग के अभावमें विषमता की काली घटाएँ मंडरा रही है । जिससे व्यक्ति, समाज और राष्ट्र परेशान है। समत्वयोग जीवन के विविध पक्षोंमें इस प्रकार समन्वय स्थापित करता है, जिससे व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन के संघर्ष नष्ट हो जाते है । यदि समाज और राष्ट्र के सभी सदस्यगण उसके लिए प्रयत्नशील हों । समत्वयोग से वैचारिक दुराग्रह समाप्त हो जाता है और स्नेह की सरिता प्रवाहित होने लगती है । जीवन के संघर्ष समाप्त हो जाते हैं। वैचारिक जगत् के संघर्ष का मूल कारण आग्रह, दुराग्रह है। दुराग्रह
विष से मुक्त होने पर मनुष्य सत्य को सहज रुप से स्वीकार कर लेता है । समत्वयोगी साधक न वैचारिक दृष्टि से संकुचित होता है और न उसमें भोगासक्ति ही होती है । इसलिए उसका आचार निर्मल होता है और विचार उदात्त होते हैं । वह जीओ और जीने दो Live and let live के सिद्धांत में विश्वास रखता है । इस प्रकार हम देखते हैं कि - समत्वयोग के द्वारा गीताकार ने समभाव की साधना पर बल दिया है ।
सामायिक आवश्यक में न राग अपना राग आलापता है और न द्वेष अपनी जादूई बीन बजाता है। वीतराग और वितृष्ण बनने के लिए यह उपक्रम है । यह वह कीमिया है जो भेद विज्ञान की अंगुली पकड़कर समता की सुनहरी धरा पर साधक को स्थित करता है । यह साधना जीवन को सजाने और सँवारने की साधना है । ७०
२) चतुर्विंशतिस्तव : दूसरा आवश्यक चतुर्विंशतिस्वत है। सामायिक में सावद्ययोग निवृत्त रहने का विधान किया गया है। सावद्य योग से निवृत्त रहकर साधक किसी न किसी आलंबन को अवश्य ग्रहण करता है । जिससे वह समभावमें स्थिर रह सके । इसलिए सामायिक में साधक तीर्थंकर देवों की स्तुति करता है । ऋषभदेव से लेकर वर्तमानकालीन चोबीस तीर्थंकरों का स्तव अर्थात् - गुणोत्कीर्तन है।'
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तीर्थंकर त्याग और वैराग्य की दृष्टि से, संयम साधना की दृष्टि से महान है । उनके
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