SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 221
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ समय के लिए वह अपनी स्थिरता के अनुसार सामायिक व्रत कर सकता है। श्रमण की सामायिक यावज्जीवन होती है। आचार्य भद्रबाहुने सामायिक के तीन भेद बताये है। १) सम्यक् सामायिक २) श्रुत सामायिक ३) चारित्र सामायिक ४९ समभाव की साधना के लिए सम्यक्त्व अनिवार्य है। १) सम्यक् सामायिक - ___ मैं आत्मा हूँ, शरीर नहीं, मैं चेतन हूँ, जड़ नहीं। मैं जीव हूँ पुद्गल नहीं ऐसी परम श्रद्धा जगानेवाली सामाईक को सम्यक् सामायिक कहा जाता है । इस सामाईकमें आत्मतत्वका परमश्रद्धा से अनुभव महसूस किया जाता है और देह भाव गौण बन जाता है या विदा ले लेता है। २) श्रुत सामायिक - जिसको सम्यक् दर्शन प्राप्त हुआ है वह संपूर्ण श्रद्धा से जैन धर्म का अभ्यास करें और श्रुतज्ञानमें वृद्धि करने का सम्यक् पुरुषार्थ करें, अभ्यास करनेसे उसका ज्ञान निर्मल बन जाए और सम्यकत्व की वृद्धिमें वह अपनी शक्तिको उपयोग में लावें और सामायिक दरम्यानभी समता गुण की प्राप्ति के लिए वीतराग परमात्मा को पूरी श्रद्धासे प्रार्थना करें, इसे श्रुत सामायिक कहा गया है। ३) चारित्र सामायिक - ज्ञानियोने चारित्र शब्द का बड़ा ही सुंदर विवरण दिया है और दर्शाया है कि - बाह्य और आभ्यांतर विशुद्धिही सच्चा चारित्र है। शास्त्रकारोने यह भी बताया है कि - बाह्यशुद्धि प्राप्त करना सरल है लेकिन आंतरिक शुद्धि प्राप्त करना कठीन है। “उपर से अच्छा - अच्छा भीतर की राम जाने" ऐसी एक कहावत है। इस कहावत में यह दर्शाया गया है कि - दूसरों के साथ हमारा बाह्य व्यवहार तो बहुत सुंदर हो सकता है, दूसरों को हम अपने व्यवहार से प्रभावित भी कर सकते हैं लेकिन विषय और कषाय से जब तक हमें मुक्ति प्राप्त न हो सके तब तक चारित्र सामायिक की सफलता का संभव ही कहाँ है ? अंतरबाह्य संपूर्ण विशुद्धि विकसित करने को ही चारित्र सामायिक कहा जाता है। ५० ____सामायिक एक आध्यात्मिक साधना है। इसलिए इसमें जातिपाँति का प्रश्न ही नहीं उठता । हरिकेश मुनि-५१ जाति से अत्यंज थे पर सामायिक की साधना से वे देवोंद्वारा भी अर्चनीय बन गये। अर्जुन मालाकार५२ जो एक दिन क्रूर हत्यारा था प्रतिदिन वह सात जीवों (१८८)
SR No.002297
Book TitleJain Dharm ke Navkar Mantra me Namo Loe Savva Sahunam Is Pad ka Samikshatmak Samalochan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharitrasheelashreeji
PublisherSanskrit Bhasha Vibhag
Publication Year2006
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy