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को प्राप्त करें यह आवश्यक है। ३६ अपनी भूलों को निहारकर उन भूलों के परिष्कार के लिए कुछ क्रिया करना आवश्यक है । आवश्यक का विधान श्रमण हो या श्रमणी हो, श्रावक हो या श्राविक हो - सभी के लिए है ।
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अनुयोगद्वारा सूत्र आवश्यक के आठ पर्यायवाची नाम दिये गये है । १) आवश्यक २) अवश्यकरणीय ३) ध्रुव निग्रह ४) विशोधि ५) अध्ययन षटकवर्ग ६) न्याय ७) आराधना और ८) मार्ग इन नामोंमें किंचित अर्थ भेद होने पर भी सभी नाम समान अर्थ को व्यक्त करते हैं ।
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प्रथम और अंतिम तीर्थंकर के श्रमणों के लिए यह नियम है कि वे अनिवार्य रुप से आवश्यक करें। यदि श्रमण और श्रमणियाँ आवश्यक नहीं करते हैं तो श्रमण धर्म से च्युत हो
जाते हैं। आवश्यक निर्युक्तिमें स्पष्ट रुपसे लिखा है कि
प्रथम और चरम तीर्थंकरोंके
शासनमें प्रतिक्रमणसहित धर्म प्ररुपित किया गया है। ३९ श्रावकों के लिए भी यह दैनिक कर्तव्य है । यही कारण है कि श्वेतांबर परंपरामें बालकों को धार्मिक अध्ययन का प्रारंभ आवश्यक सूत्रसेही कराया जाता है।
अनुयोगद्वार सूत्रमें इनके नाम इस प्रकार दिये गये हैं।
१) सावद्ययोग विरति ( सामायिक)
२) उत्कीर्तन (चतुर्विंशतिस्तव)
३) गुणवत् प्रतिपत्ती (गुरुपासना या वंदन )
४)स्खलीत निंदना (प्रतिक्रमण )
५) व्रणचिकित्सा (कायोत्सर्ग - ध्यान - शरीर से ममत्वका त्याग )
६) गुणधारण (प्रत्याख्यान - नियम ग्रहण )
प्रत्येक आवश्यक का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है
१) सामायिक -
छः आवश्यक में सामायिक प्रथम आवश्यक है । वह जैन आचार का सार है । सामायिक श्रमण और श्रावक दोनों के लिए आवश्यक है । ४० श्रमणों के लिए यह प्रथम चारित्र है । तो गृहस्थ साधकोंके लिए चार शिक्षाव्रतोंमें प्रथम शिक्षाव्रत है । आचार्य हरिभद्रने तो स्पष्टरुप से कहा है कि जो सामायिक करता है और समभावमें स्थित रहता है वह नि:संदेह मोक्ष को प्राप्त करेगा। सामायिक विशुद्ध साधना और इस साधन से जीव घातीकर्मों
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