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________________ प्रेमसे परिप्लावित नहीं हो जाता, तब तक साधना का सुंदर रंग निखरही नहीं पाता ।३३ सामायिक को साध्य और साधन दोनों कहा गया है। सामायिक करने से प्रत्याख्यान आदि की शुद्धि होती है और सामइक के लिए प्रत्याख्यानादि आवश्यक अनिवार्य है। सामायिक की क्रिया नमो - नमस्कार से होती है और नवकार मंत्र में सामायिक का समावेश हुआ है। इतनाही नहीं, शास्त्रकारोने नवकार मंत्र में षड़ावश्यक का भी गौरव से वर्णन किया १)नमो = सामायिक आवश्यक - समभाव, समता २)अरिहंताणं - चतुर्विशति स्तव - वीतरागदेवकी स्तुति सिद्धाणं ३)आयरियाणं उवज्झायाणं - गुरुवंदन - गुरुदेवोंको वंदन - नमस्कार । लोए सव्वसाहूणं ४) एसो पंच नमुक्कारो सव्व पावपणासणो - प्रतिक्रमण - पापसे, अधर्म से धर्म की ओर लौटना । ५)मंगलाणं च सव्वेसि = कयोत्सर्ग - देहभाव का विसर्जन ६) पढमं हवाई मंगलं = प्रत्याख्यान = गुरुसाक्षीसे स्वेच्छासे प्रतिज्ञा लेना ३४ श्रावकाचार की प्रत्येक क्रिया के साथ इस महामंत्र का घनिष्ट संबंध है । धार्मिक एवं लौकिक सभी कृत्यों के प्रारंभ में श्रावक इस महामंत्र का स्मरण करता है और स्मरण मात्र से ही उसे आत्मस्वरुप का बोध होता है । संसार की समस्त बाधाओं को दूर करनेवाला यह मंत्र षडावश्यक की परिपूर्ण समझ के लिए और क्रिया के लिए बहुत उपकारी है । नमस्कार सेही व्यक्ति का अहम् और गर्व का खंडन होता है और वह समाधिकी ओर आगे बढ़ सकता है। __ आवश्यक सूत्रमें गणधर भगवंतोने आवश्यक के बारे में बहुत ही विगतपूर्ण वर्णन किया है। आवश्यक की व्याख्या करते हुए लिखते हैं कि, जो प्रशस्त गुणोंसे आत्माको संपन्न करता है वह आवश्यक है। ३५ आवश्यक जैन साधना का प्राण है। जैन धर्म में दोषों की विशुद्धि के लिए और गुणोंकी अभिवृद्धि के लिए आवश्यक हैं। आवश्यक से आत्मशोधन की प्रवृत्ति वेगवंती होती है। इस साधना और आराधना से आत्मा शाश्वत सुखका अनुभव करें, कर्ममल को नष्ट कर सम्यक्दर्शन, सम्यक ज्ञान और चारित्र से अध्यात्म के आलोक (१८५)
SR No.002297
Book TitleJain Dharm ke Navkar Mantra me Namo Loe Savva Sahunam Is Pad ka Samikshatmak Samalochan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharitrasheelashreeji
PublisherSanskrit Bhasha Vibhag
Publication Year2006
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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