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साधक को कैसा उपयोग रखना चाहिये :
जिसमें चैतन्य है उसे जीव कहते है। उपयोग लक्षण और चैतन्य लक्षण में कोई भेद नहीं है। ज्ञान का अर्थ है जानने की शक्ति और दर्शनका अर्थ है देखने की शक्ति । जो अपने इन गुणों को किसी भी अवस्थामें नहीं छोड़ता,अर्थात, चाहे निद्रावस्था हो, चाहे जागृत अवस्था हो, या तो स्वप्नावस्था हो । जीव का यह कर्तव्य है कि - हमेंशा के लिए इन गुणों से युक्त रहना चाहिए। जिसमें ज्ञान शक्ति नहीं है वह जड़ अथवा अजीव है। जो भिन्न - भिन्न प्रकार के कर्म करनेवाला, कर्मों के फल भोगनेवाला, कर्मों के कारण भिन्न- भिन्न गतियोंमें जानेवाला है और समस्त कर्मों को नष्ट कर, परम पद को प्राप्त करनेवाला है वह आत्मा जीव है। २५ संक्षेपमें ऐसा कहना चाहिए कि- जीव को अपना ज्ञानोपयोग अच्छी तरह से करना चाहिए। जीव और चैतन्य अभिन्न है। जीव के अलावा अन्य पदार्थ स्वपर का ज्ञान और हिताहित का विवेक नहीं कर सकते, इसलिए जीव का लक्षण चैतन्य बताया गया है। जीवसुख की अभिलाषा करता है और दु:खसे डरता है । जीव - अहितकारी क्रिया करता है और उसका फल भोगता है। जीवका उपयोग शुभ होना चाहिए। शुभ से शुद्ध की
ओर गति करना उसका कर्तव्य बन जाता है, और अंतमें सिद्ध पद की प्राप्ति के लिए उपयोग की प्रवृत्ति करना उसका लक्ष्य होना चाहिये।
व्यक्ति पदार्थोंका परित्याग करके हिमालय की गुफाओंमें जा पहुंचे तो भी उसके मन से पदार्थों के विषयमें राग-द्वेष, आसक्ति, ममत्व और मोह नहीं छूटते, तबतक वह संसार से मुक्त नहीं हो सकता। विकारों और विकल्पों से यह संसार भरा हुआ है। इन दोनोंका परित्याग करना संसार से मुक्त होना है। संसार का अंत करना है। तो जीव का यह कर्तव्य है कि अपने ज्ञानोपयोग और दर्शनोपयोग का संसार से मुक्त होने के लिए कार्यान्वित करना चाहिए। अपनी चेतना को जागृत रखके आत्म साक्षात्कार या तो परम पद की प्राप्ति के लिए भव्य पुरुषार्थ करना चाहिए। मनीषीयों और ज्ञानियों का उपयोग के प्रति आदर - ___ ज्ञानियोने शुभोपयोग का बड़ा महत्त्व दिखाया है। जीव अपने शुभोपयोग को जितनी जागृति से अपने जीवन, व्यवहार में प्रयोग करेंगे उतनी ही तीव्र गतिसे उसे शुभ फल की प्राप्ति होगी। संसारियों को शुभ और अशुभ दोनों प्रकार की प्रवृत्ति करनी पड़ती है , मगर शुभ प्रवृत्ति की ओर उसका विशेष लक्ष्य होना चाहिए ।२६ ।
चेतना के तीन प्रकार का शास्त्रकारोंने वर्णन किया है। १) कर्मफल चेतना २) कर्म चेतना ३) ज्ञान चेतना इन तीनों प्रकार की चेतनामें ज्ञान चेतना को अधिक महत्त्व दिया गया है।
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