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________________ “अरिहंतोमह देवो, जावज्जीवं सुसाहुणो गुरुणो । अ जिण पण्णतं तत्तं, इस सम्मत्तं मएगहियं ॥ " १४ अरिहंत मेरे देव हैं। सच्चे साधु मेरे गुरु है । जिनद्वारा निरुपित ही तत्व है । नवकार मंत्र और शुभोपयोग - शुद्धोपयोग - नवकार मंत्र की शक्ति अजोड़ है। इस मंत्र के बारेमें जो कुछ भी लिखा जाये वह कम है। इस मंत्र के बारे में अनेक ज्ञानियोने बड़े आदर और पूज्यभाव से इतना लिखा है कि उसका संक्षिप्त विवरण करना मेरे लिए अशक्य है। जो भव्य जीव इस नवकार मंत्र की आराधना करता है, उसके मनकी समस्त कामनाएँ पूर्ण करने में यह कल्पवृक्ष और कामधेनु समान है। दुःख, दुर्गति, दुर्भाग्य और दरिद्रता का नाश करनेवाला यह मंत्र सिद्ध पद प्राप्त में भी अनिवार्य है । एक दूसरी मान्यता के अनुसार नवकार मंत्रमें नवपद हैं और नवपद का प्रभाव अचिंत्य है। प्राचीन से प्राचीन शास्त्र इसकी महिमाका गान करते आयें हैं। नौ का अंक अक्षय अंक है । अर्थात् यह संख्या कभी क्षय नहीं होती, टूटती नहीं है । गणितशास्त्र में नौ की संख्या एक अत्यंत चमत्कारी संख्या मानी गई है। गणितकार, चमत्कार बतानेवाले कहते हैं कि “आप अपनी मन इच्छित संख्याको सीधी जोड़कर, उसका जो अंक उसमें घटा लें । फिर जो संख्या आपके पास रहें उसमें से कोई भी एक अंक गुप्त रखलें और बाकी अंक हमें बता दें ।” हम बिना पूछे ही आपका गुप्त अंक प्रगट कर सकते हैं। इसका रहस्य यह है कि - पूरी संख्या को जोड़ने पर नौं में जितना कम होगा वही गुप्त अंक माना जाएगा। इसे गुप्तांक शोधन भी कहते हैं । - नौ की संख्यासें संबंध रखनेवाले तत्वोंपर यदि हम विचार करें तो बहुत सी ऐसी बातें हम की संख्या के संदर्भ में दिखा सकेंगे। तत्व नौ हैं। पुण्य के भेद नौ हैं। चक्रवर्ती की निधियाँ नौ है । ब्रह्मचर्य साधना की वाड नौ हैं। लोकांतिक देव नव हैं। इस अवसर्पिणी काल में बलदेव, वासुदेव और प्रतिवासुदेव नौ हैं । साहित्य की परिभाषामें काव्य से रस नौ हैं। भक्ति संप्रदायवाले नवविधा भक्ति बताते हैं। हिंदु मान्यतानुसार नवरात्रीमें नौ दुर्गाकी पूजा होती है। जैन मान्यता के अनुसार नवकार मंत्र के आरंभ के दो पदमें देव तत्वका, बादके तीन पदों में गुरुतत्व का और चूलिकाके चार पदोंमें धर्म तत्वका निरुपण मिलता है । तीनों तत्वोंको मिलाकर नवपद होता हैं और ये नवपद अक्षयपद की प्राप्ति के लिए सर्वोत्तम है। आत्मा तो ज्ञेयत्व' और ज्ञानत्व ज्ञायक' है । १५ (१७९)
SR No.002297
Book TitleJain Dharm ke Navkar Mantra me Namo Loe Savva Sahunam Is Pad ka Samikshatmak Samalochan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharitrasheelashreeji
PublisherSanskrit Bhasha Vibhag
Publication Year2006
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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