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________________ से खमत-खामणा की, संसार के सभी जीवों से क्षमा माँगी। तत्पश्चात् भावना की - सभी जीव सुखी रहें , निरोगीरहें, सभी का कल्याण हो । बादमें नवकार मंत्र के जप और साधना में तल्लीन हो गए। नवकार में चित्त रम गया तो शारीरिक पीड़ा की अनुभूति धीरे-धीरे कम होती चली गई। सारी इच्छाएँ समाप्त हो गई। सिर्फ एक ही इच्छा थी - सद्गति प्राप्त हो। ऐसी अत्यन्त निराशा की स्थिति में मनुष्य धर्म की शरण में आता है तो अनन्य आस्था के साथ उसी में खो जाता है। यह अनन्य भाव ही साधना में शीघ्र सफलता दिलाता रात्री के ग्यारह बजे जोरदार वमन हुआ और मूर्च्छित हो गए । अनन्य भावपूर्वक नवकार मंत्र के जप ने अपना प्रभावा दिखाया, कैन्सर के विषैले किटाणु तथा विषाक्त रक्त वमन के रास्ते निकल गया, रोग समाप्त हो गया। अशक्ति के कारण बेहोश हो गये थे पर परिवारों को लगा चले गए। रोना - पीटना शुरू हो गया । पर आश्चर्य, गुलाबचन्दभाई को होश आ गया। उन्होंने पानी माँगा। दोतीन लोटे पानी पी गए । माँने थोडा दूध दिया वह भी वे पी गए फिर वे गहरी नींद में सो गए । प्रात:काल उठे तो एकदम स्फूर्ति अनुभव की । चाय पी ।धीरे-धीरे स्फूर्ति बढ़ने लगी। श्री गुलाबचन्द भाई ने साक्षात् नवकार मंत्र के प्रभाव का अनुभव किया। अब तो नवकार मंत्र उनके हृदय में बस गया और रातदिन मनमें नवकार मंत्र का जप करने लगे और यही भावना करते - सभी सुखी हों, निरोगी हों। अब सप्ताह के बाद वे अपने फॅमिली डॉक्टरसे चेकअप करवाने गए । डॉक्टर तो आश्चर्य से अवाक् हो गये। पूछा, आपने किस डॉक्टर या वैद्य का इलाज करवाया ? उन्होंने कहा - सिर्फ नवकार मंत्र की आराधना की और कुछ भी नहीं। नवकार मंत्र के जप से उनका जीवन सुखी हो गया। यह कहानी नहीं आज के विज्ञान युग में भी प्रभुनाम का प्रभाव अमिट छाप छोड़ता है। यह सत्य घटना है। १९७ निष्कर्ष : _ "जैन धर्म में नवकार मंत्र और भारतीय मंत्र विद्याओं में नवकार मंत्र का स्थान" इस द्वितीय प्रकरण के प्रारंभ में नवकार मंत्र की उत्पत्ति, नवकार मंत्र का अर्थ, नवकार मंत्र का बाह्य और आंतरिक स्वरुप, नवकार मंत्र यह महामंत्र क्यों ? नवकार महामंत्रका महत्त्व आदि का संक्षेप में विवेचन किया गया है। (१५८)
SR No.002297
Book TitleJain Dharm ke Navkar Mantra me Namo Loe Savva Sahunam Is Pad ka Samikshatmak Samalochan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharitrasheelashreeji
PublisherSanskrit Bhasha Vibhag
Publication Year2006
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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