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________________ तत्पश्चात् भारतीय विद्यामें मंत्रशास्त्र की परंपरा, मंत्र की परिभाषा, मंत्र जप की उपयोगिता, मंत्रजप के लौकिक और आध्यात्मिक रुप, मंत्र का शब्द ब्रह्मात्मक स्वरुप, मंत्र और अंतर्जागरण आदि का संक्षेप में निरुपण किया गया है। मंत्राराधना का जप से विशेष संबंध है । जप किस प्रकार किया जाए, उसकी साधारण प्रक्रिया उसके भिन्न-भिन्न विधि क्रम इत्यादि विषयोंको भी सामान्यरुपमें व्याख्यात किया गया है ताकि मंत्राराधना के क्षेत्रमें रुचिशील साधकों को आराधना की पृष्ठभूमि प्राप्त हो सके। मंत्र और उसका अभ्यास या आराधना करनेवाले व्यक्ति का परस्पर अत्याधिक संबंध है। आराधक को मंत्राराधना करने से पूर्व मंत्रविषयक मंत्राभ्यास का प्रयोजन ज्ञान होना चाहिए। इस संबंध में भी उल्लेख किया गया है। साथ ही साथ जैन परंपरामें प्रचलित आनुपूर्वी जपका स्वरुप भी बतलाया गया है। इस प्रकरण में नवकार आराधना की साधारण पृष्ठभूमिका वर्णन किया गया है, जो उस दिशामें अध्ययन करनेवाले और साधना करनेवाले व्यक्तियों के लिए मार्गदर्शक है। नवकारमंत्र चिंतन का ज्ञान यहाँ संक्षेप में दिया गया है। नवकार मंत्र का ज्ञान, उसका स्वरुप समझने के बाद उसपर अटूट श्रद्धा जीवमें उत्पन्न होती है। साधक उसका जप करने को तैयार होता है। साधक एक आसन पर स्थिर होकर बैठता है । मनको एकाग्र कर श्वास का निरीक्षण कर, नवकार मंत्र का जाप करते हुए उसका चिंतन करता है। ऐसा करने से अशुभ विचार दूर होते हैं और शुभ विचारोंका निर्माण होता है । नवकार मंत्र के जप से साधक के मन में निश्चित परिवर्तन होता है। इसमें विश्वास और आस्था की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। विश्वास की शक्ति, नवकार मंत्र पर श्रद्धा, विश्वाससे साधक के पाप, ताप धूल जाते हैं। यह जन्मोजन्मांतर के पाप धोने की आध्यात्मिक वॉशिंग मशीन है । इस प्रकार इस प्रकरण में उल्लेख हुआ है। इस प्रकरण में नवकार मंत्र के प्रभावकी कहानियोंका उल्लेख किया गया है। तृतीय प्रकरण में नवकार मंत्र का विशेष विश्लेषण और विश्वमैत्री शुभो -पयोग और शुद्धोपयोग, षड्रावश्यक और नवकार मंत्र, नवकार मंत्र और नवतत्व, लेश्या विशुद्धि आदि ज्ञान की प्राप्ति साधक को आवश्यक है । लेश्या विशुद्धि से भाव और भवकी विशुद्धि होती है। आदि का विश्लेषण आगे के प्रकरण में दिया जाएगा। (१५९)
SR No.002297
Book TitleJain Dharm ke Navkar Mantra me Namo Loe Savva Sahunam Is Pad ka Samikshatmak Samalochan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharitrasheelashreeji
PublisherSanskrit Bhasha Vibhag
Publication Year2006
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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