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एक क्षण रुककर उसने णमोकार मंत्र गुना और प्रसन्न मन से घड़े में हाथ डाला। ताजे फूलों का एक सुन्दर महकता हार ! वाह बहुत सुंदर ! उसने पति से कहा- “स्वामी ऐसा सुंदर हार तो पहले आप पहनिए ।” वह हार लेकर पति के पास आई। पति को फूलों का हार में काला नाग फुंकारता दिखाई दिया, उसकी धिग्धी बँध गई। डरकर पीछे हटता गया " ना ! ना ! यह हार मुझे मत पहनाओ। तुम ही पहनो ।” सास, ससुर और ननंद भी दरवाजे की ओट में छिपकर यह दृश्य देख रहे थे । "अरे, यह क्या जादू है ? बहू के हाथ में तो यह फूलों का हर जाता है और बेटे के पास आते ही काला नाग ! "
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श्रीमती पति देव को हार पहनाने के लिए आग्रह करने लगी, परंतु बेचारा पति देवता इस नाग देवता से डरकर पसीना पसीना हो गया ।
आखिर सास, ससुर सामने आये। बोले- बहूरानी ! यह हार तुमही पहनलो !
श्रीमती ने णमोकार मंत्र गुना और उस जहरीले फुफकारते नाग को फूलों का हार समझकर गले में पहन लिया। सब चकित थे । सचमुच यह कोई महामानवी है। सास, ससुर, ननंद और पति ने हाथ जोड़कर कहा -
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“बहू, हमें क्षमा कर दो। हमने तो तुझे मारने के लिए इस घड़े में काला नाग रखा था । परंतु तुम्हारे भाग्य से यही फूलों का हार बन गया। तुम महान हो, सचमुच तुम कोई देवी हो, लक्ष्मी हो! !”
श्रीमती ने कहा " अवश्य ! तो सब मिलकर बोलिए णमो अरिहंताणं, मो सिद्धाणं, णमो आयरियाणं ।" उस दिन से बुद्धप्रिय सचमुच धर्मप्रिय बन गया । सभी ने णमोकार महामंत्र को जीवन मंत्र बना लिया । १९६
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वर्तमान में सत्य घटित घटना
नवकार महामंत्र चमत्कार और प्रत्यक्ष
अनुभव की कसोटी पर - श्री. गुलाचन्दभाई
आज के वैज्ञानिक युग में चिकित्सा विज्ञान अपनी उन्नति की चरम विकास का दावा कर रही है, इस युग में भी कुछ ऐसे रोग हैं जिनका इलाज अभी विज्ञान के पास नहीं है । डॉक्टर स्पष्ट कह देते रोगी को अब दवा की नहीं दुआ की जरूरत है।
श्री गुलाबचन्द भाई के साथ भी ऐसा ही हुआ । छः माह तक गुलाबभाई को सरदर्द
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