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________________ विषघर बना फूलों की माला श्रीमती सैंकडों वर्ष पुरानी घटना है । धनगुप्त नाम के सेठ की एक कन्या थी । श्रीमती उर्फ सोमा । वह सुंदरता में चाँद का टुकडा थी। गुणों में लक्ष्मी और सरस्वती से कम नहीं थी। माता ने बचपन से ही उसमें धार्मिक संसार कूट-कूट कर भर दिए थे । जबसे उसने बोलना सीखा, सबसे पहले णमोकार मंत्र बोला। श्रीमती कोई भी काम करने से पहले एक क्षण रुकती, और मन ही मन णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं. णमो आयरियाणं.. आदि बोलकर अपने इष्ट देवों का स्मरण कर लेती। इस प्रकार उसके हृदयमें एक नई स्फूर्ति और शक्ति भर जाती । उसका प्रत्येक काम सफल हो जाता । णमोकार मंत्र उसे प्राणों से प्यारा था। उसके जीवन का सहारा था। उसी नगर का एक युवक बुद्धप्रिय श्रीमती की सुंदरता, शालीनता और सुघडता पर मुग्ध हो उठा। उस के साथ विवाह करने के लिए उसने पापड बेलने शुरू किए। धनगुप्त सेठ की सबसे पहली शर्त थी - लडका धर्मप्रेमी और सदाचारी हो । बुद्धप्रिय ने धार्मिकता का ऐसा ढोंग रचा कि धनगुप्त उसपर निछावर हो गया और बुद्धप्रिय एक दिन श्रीमती को एक दिन पत्नी बनाकर घर ले आया। ससुराल की दहेली पर गाँव धरते ही श्रीमती का माथा ठनका । उसने देखा सास, ससुर और पति तो जिनधर्म के तो कट्टर द्वेषी है। उसकी धर्म क्रिया और णमोकार मंत्र से भी द्वेष है। सामायिक व जप करते समय वे उसे घर-घूर देखते । किंतु श्रीमती घबराई नहीं । उसे अपनी धार्मिकता पूरा विश्वास था। दूसरे दिन सुबह उठते ही उसने सबसे पहले णमोकार मंत्र जपा, सामायिक की। सासससुर को यह फूटी आँख नहीं सुहाया। बुद्धप्रिय भी श्रीमती को धार्मिक क्रिया करने और णमोकार मंत्र जपने से बार - बार टोकता, रोकता रहता, परंतु अपने धार्मिक जीवन में पूरी स्वतंत्र निष्ठा रखनेवाली श्रीमतीने णमोकार मंत्र का जप नहीं छोड़ा। इससे चिढ़कर कुटिल सास ने श्रीमती को मार डालने की योजना बनाई। बेटे को भी उल्टी पट्टी पढ़ाई। बुद्धप्रिय एक कालबेलिये - सपेरे के पास गया और एक काला नाग घड़े में रखकर ले आया। घड़ा चौकी पर रख दिया। श्रीमती को कहा - "प्रिये ! देखो, मैं तुम्हारे लिए सुन्दर फूलों का हार लाया हूँ। उस घड़े में रखा है। जरा पहनकर तो देखो। श्रीमती की आदत थी कोई भी काम करने से पहले तीन बार णमोकार मंत्र गुन लेती। (१५५)
SR No.002297
Book TitleJain Dharm ke Navkar Mantra me Namo Loe Savva Sahunam Is Pad ka Samikshatmak Samalochan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharitrasheelashreeji
PublisherSanskrit Bhasha Vibhag
Publication Year2006
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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