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पसीजा। अमर कुमार एकदम असहाय भाव से इधर-उधर देखने लगा। उसे बचानेवाला कोई नहीं था। ___अग्नि ज्वाला के रुपमें मृत्यु को सामने अट्टहास करते देखकर अमरकुमार को बचपन में सीखा हुआ नवकार मंत्र याद आया। मंत्र सीखानेवाले गुरुजीने बताया था - यह मंत्रराज सबकी सहायता करता है। इसके प्रभाव से जल-अग्नि-सर्प आदि का प्रकोप शांत हो जाता है। ___अमरकुमार के सामने अब वही एक मात्र शरण था। वह अनन्यभाव पूर्वक णमोकार मंत्र का स्मरण करने लगा। मन ही मन पुकारने लगा - हे मंत्रराज, महामंत्र ! आज आप ही मेरी रक्षा कर सकते हैं। संसार में आपके सिवा कोई भी मेरा रक्षक नहीं है। मैं आपकी शरण में हूँ। ___ मंत्र स्मरण करते - करते अमरकुमार भय-मुक्त हो गया। उसका मुख प्रसन्नता से दमकने लग गया। तभी याज्ञिकों ने उसे पकड़कर धधकती अग्निज्वाला में होम दिया। उसके मुख से तो बस णमो अरिहंताणं णमो सिद्धाणं ... की ध्वनि निकल रही थी।
चमत्कार ! अद्भूत चमत्कार ! धधकती अग्नि ज्वालाएँ पानी का कुंड बन गई। उसपर सुन्दर सिंहासन बन गया । अमरकुमार सिंहासन पर आसीन था उसका शरीर सुन्दर वन आभुषणों से सज्जित हो गया ! वह अभी भी अनन्यभाव के साथ नवकार मंत्र के ध्यान में लीन था।
राजा श्रेणिक, मंत्री, पुरोहित आदि सभी चकित तथा भ्रमित से देखते ही रह गए। बालक में उन्हें दैवी शक्ति दिखाई दी। आनेवाली घोर विपत्ति की आशंका से उनका हृदय धकधक करने लगा। हाथपैर काँपने लगे। हाथ जोड़कर विनयपूर्वक सब ने अमरकुमार को नमस्कार किया।
हे देवकुमार ! हमारा अपराध क्षमा करो ! हमारी रक्षा करो। हमसे बड़ी भूल हो गई है।
अमरकुमार का हृदय करुणासे द्रवित हो गया। उसने अभय मुद्रामें हाथ ऊपर उठाया उसका स्वर निकला
___ णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं..' यह महामंत्र आपको सद्बुद्धि दें, सबकी रक्षा करे ।
इस घटना के बाद राजा श्रेणिक जैनधर्म के अनन्य श्रद्धालु बन गए। णमोकार महामंत्र पर सबकी आस्था दृढ़ हो गई। १९५
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