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· प्रतापी राजा बना। णमोकार महामंत्र उन दोनों के हृदय में सदा बसा रहता था। णमोकार मंत्र की आराधना के फलस्वरुप उन्हें जीवन में सर्वत्र आनन्द और जयजयकार प्राप्त हुआ।
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सबका रक्षक : महामंत्र नवकार
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अमरकुमार
मगध नरेश महाराज बिम्बिसार श्रेणिक ने बड़ी उमंगों के साथ एक नया महल बनावाया। किंतु दिन में जितना बनता, रात्री के समय वह गिरकर ध्वस्त हो जाता। इससे महाराज श्रेणिक चिंतित हो उठे । अनेक उपाय किए, परंतु कोई भी उपाय काम नहीं आया। कुछ अंधविश्वास पंडितों ने कहा - किसी असुर शक्ति का प्रकोप है, अत: बत्तीस शुभ लक्षणोंवाले एक मनुष्य की बलि देकर देवता को प्रसन्न करना चाहिए ।
शुभ लक्षणोंवाले पुरुष की खोज शुरु हुई । राजाने उद्घोषणा करवाई - बत्तीस शुभ लक्षणोंवाला जो पुरुष अपनी बलि देने को तैयार होगा उसे, उसके वजन के बराबर तोलकर सोना दिया जायेगा ।
एक गरीब दरिद्री ब्राह्मणी के चार पुत्र थे । उसका एक पुत्र था अमरकुमार । लगभग १२ वर्ष का होगा वह, बत्तीस शुभ लक्षणों से युक्त था । उसकी माता ने सोचा, यदि इसके बराबर सोना मिल जाएगा तो बाकी पूरे परिवार का पालनपोषण हो जायेगा। सोने के लोभ में उसने अपना पुत्र बलिदेने के लिए राज पुरुषों को बेच दिया। राजा के सामने 'अमरकुमार को लाया गया, ब्राह्मणी (माता)को अमरकुमार के बराबर तोलकर सोने की मोहरें दे दी गई ।
अमरकुमार ने राजा, मंत्री, पुरोहित आदि सभी के पाँव पकड़े, आँसु बहाकर बड़ी दीनतापूर्वक प्रार्थना की, मुझे मत मारो, मुझे मरने से बहुत डर लगता है। मुझे छोड़ दो। परंतु किसी को भी उसके गिड़गिड़ाने पर दया नहीं आयीं। राजा को तो अपना स्वार्थ था । वह कैसे छोड़ देता ?
पुरोहितों के आदेश से अमर कुमार को स्नान आदि कराकर फूलमाला पहनाई, फिर सैनिकों के पहरे में यज्ञ वेदी पर लाया गया। मंत्रों से शुद्ध करके यज्ञ - कुण्ड में होम ने की तैयारी की गई ।
अग्निकुंड की ज्वाला देखकर अमरकुमार का रोम-रोम काँप गया । उसने पुरोहितों आदि से बहुत प्रार्थना की "मुझे मत मारो ! मुझे मत मारो !” परंतु किसी का हृदय नहीं
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