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________________ क मैना ने इसे ही अपना भाग्य समझा, न रोयी, न क्रोध किया। प्रसन्न मनसे मातापिता से विदा लेकर कुष्टी पति उम्बर राणा के साथ नगर के बाहर एक तंबू में आ गई। उम्बर राणा की माता कमलप्रभा ने इतनी सुंदर सुशील बहू को पाकर अपने भाग्य को सराहा। उसे दुख व निराशा के महासागर को तैरने के लिए जैसे उसे यह सुख और आशा की एक दैवी - नौका ही मिल गई। रात के समय उम्बर राणा की माता ने दोनों को अपने पास बिठाकर हा - बेटी ! तू घबराना मत । हम भी क्षत्रिय हैं, तुम्हारा पति चम्पानगरी का राजकुमार श्रीपाल है। यह जन्म से कोढ़ी नहीं हैं,किंतु उसके चाचा ने हमारा राज्य छीन लिया, इसके पिता महाराज सिंहस्थ वीरगति को प्राप्त हो गये। श्रीपाल के चाचाने हमारे साथ छल किया, तब हम अपनी जान बचाके भागकर वन में छुप गए। वन में कुष्टियों का यह दल हमें मिल गया। वर्षों इनके साथ रहने को कारण श्रीपाल को भी कुष्ट रोग हो गया है। किंतु अब तू आ गई है, तो हमारा भाग्य जग गया है। सब आनंद होगा। ___ मैना सुन्दरी पति और सास की सेवा के साथ ही सभी सात सौ कुष्टियों की व्यवस्था का भी ध्यान रखती । कुष्टी दल को तो एक देवी मिल गई। ___ एक दिन नगर के बाहर उद्यानमें एक प्रभावशाली आचार्य मुनिचन्द्रसुरी पधारे । मैनासुंदरी को पता चला तो वह पति उम्बरराणा को साथ लेकर आचार्यश्री के दर्शनार्थ गई। ऐसी सुशील सुंदर राजकन्या को एक कुष्टी की पत्नी के रुप में देखकर आचार्यश्रीने जिज्ञासा व्यक्त की, तो मैनासुंदरी ने सारी कहानी सुना दी। मैनासुंदरी का धैर्य, दृढ़ता और आत्मविश्वास देखकर आचार्य श्री ने कहा - वत्से ! तुम नवकार महामंत्र के नवपद की आराधना करो, सब रोग, शोक, दुख दूर हो जायेंगे । निश्चित ही यह अचिन्त्य फलप्रदायी महामंत्र है । इसकी आराधना से तुम्हारे सौभाग्य का सूर्योदय होगा। ____ आचार्यश्री के निर्देशानुसार चैत्र सुदी सप्तमी के शुभदिन से श्रीपाल एवं मैनासुन्दरी ने आयम्बिल तप करके अनन्य भक्ति भाव तथा दृढ़ विश्वास पूर्वक णमोकार महामंत्र के नवपद की साधना, आराधना प्रारंभ की। इस आराधना के प्रभाव से श्रीपाल में आश्चर्य जनक परिवर्तन आ गया। उसका कोढ़ मिट गया। उसका शरीर सुन्दर तो बना ही। साथ - साथ करोड़ो योद्धा जैसा बल, पराक्रम जाग उठा। णमोकार मंत्र का अभिमंत्रित जल छिड़कने से सभी कुष्टियों का कोढ़ दूर हो गया श्रीपाल के प्रबल पुण्य का उदय हुआ, वहा जहाँ भी गया बिना माँगेही विशाल वैभव, राज्य संपदा उसके चरणोंमें आने लगी। सभी प्रकार की विपत्तियाँ टलती गई। वह भारतवर्ष का महान (१५२)
SR No.002297
Book TitleJain Dharm ke Navkar Mantra me Namo Loe Savva Sahunam Is Pad ka Samikshatmak Samalochan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharitrasheelashreeji
PublisherSanskrit Bhasha Vibhag
Publication Year2006
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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