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नवपद मय नवकार जीवन में जय जयकार
मैनासुंदरी
प्राचीन समय में अवन्ती (उज्जयनी) में राजा पुण्यपाल राज्य करते थे। उनकी दो सुन्दर सुशील कन्याएँ थीं। बड़ी का नाम सुरसुन्दरी था, छोटी का नाम था मैना सुंदरी !
मैना सुन्दरी बहुत ही सुसंस्कारी, सुशिक्षित और स्वावलंबी विचार की थी। एक बार राजा पुण्यपाल ने उसकी प्रतिभा और समझदारी पर प्रसन्न होकर कहा - पुत्री ! हम तुझपर बहुत प्रसन्न हैं। जो मन चाहे वर माँग लों।
मैनासुन्दरी ने हाथ जोड़कर कहा - पिताजी, वर या सुख-दुख कोई भिक्षा है, जो माँगने से मिल जाये ? यह तो प्राणी के अपने ही कर्म या भाग्य के अनुसार स्वत: मिलते हैं । फिर मैं एक क्षत्रिय कन्या हूँ, मैंने माँगना कब सीखा है ?
राजा पुण्यपाल बड़े क्रोधी अहंकारी स्वभाव के थे। मैनासुन्दरी की स्वाभिमानपूर्ण बातें उनके अहंकारी हृदयमें तीर - सी चूभ गई। मन ही मन निश्चय किया, मैना को अपने भाग्य पर बड़ा घमंड है तो अब इसे सीख देना है कि सुख-दुख देनेवाला भाग्य नहीं है, राजा पुण्यपाल है।
एक दिन राजा पुण्यपाल नगर के बाहर घूमने निकला। सामने ही कुष्ट शेगियों का एक झुण्ड आता दिखाई दिया। एक कुष्टी युवक घोड़े पर बैठा है। अनेक कुष्टी पीछे - पीछे चल रहे हैं। सब उम्बर राणा की जय बोलते हुए उधर ही आ रहे हैं।
राजाने पूछा - "तुम लोग कौन हो ? कहाँ से आ रहे हो ? यह युवक कौन है ?" तब एक कुष्टी व्यक्ति आगे आया, वह बोलने में चतुर था। राजा को प्रणाम कर बोला, "महाराज ! हम सात सौ कुष्टियों का यह दल गाँव - गाँव घूमता हुआ आज यहाँ आपके नगर में आया है। घोड़े पर बैठे ये उम्बर राणा हमारे दल के राजा है । कुष्टरोगी होने के कारण किसी एक गाँव में हमें टिकने नहीं दिया जाता इसलिए हम गाँव - गाँव भटकते हुए आज यहाँ आए हैं।”
राजा पुण्यपाल ने उम्बर राणा के विषय में पूछा, तो पता चला, वह अभी कुँवारा है। उसने सोचा, मैना सुन्दरी को अपने भाग्य पर बड़ा अहंकार है। उम्बर राणा के साथ यदि विवाह कर दिया जाय तो उसे भी पता चल जायेगा.. सुख-दुख देनेवाला कर्म है या राजा, मंत्री, पुरोहित, महारानी आदि सभी ने पुण्यपाल के इस विचार का विरोध किया, परंतु राजा तो बड़ा जिद्दी था। उसने उम्बर राजा के साथ, लक्ष्मी-सरस्वती जैसी मैनासुन्दरी का विवाह कर दिया।
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