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________________ णमोकार महामंत्र सुनाता हूँ, शांति के साथ सुनो। तुम्हारा जन्म सुधर जायगा।.. और णमो अरिहंताणं णमो सिद्धांणं की मधुर ध्वनि गूंजने लगी। नाग-नागिन ने राजकुमार की मधुर वाणी सुनी, जैसे झुलसते शरीर पर चन्दन का लेप लगा दिया हो । उनकी आत्मा को बड़ी शांति मिली । णमो अरिहंतांण.. महामंत्र की ध्वनि सुनते - सुनते ही शुद्ध भावनापूर्वक दोनों ने देह त्याग दिया। अंतिम समय में पंच परमेष्ठी मंत्र सुनते - सुनते इन दोनों की आत्मा नागकुमार जाति के देवों के इन्द्र एवं इंद्राणी बने । नाग धरणेद्र बना, नागिन पद्मावती देवी बनी। दोनों ने जब अपने महान उपकारी पार्श्वकुमार को जाना तो वहीं से कृतज्ञभाव पूर्वक नमस्कार किया। उनके रोम - रोम से जैसे मुखरित हो उठा णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं ... कुछ समय बाद राजकुमार पार्श्व दीक्षा ग्रहण कर जंगल में ध्यान-साधना करने लगे। उधर कमठ संन्यासी जनता में अपमानित होने पर क्रोध आवेश में भर्रा उठा। दुर्भावों के साथ देह त्याग कर वह मेघमाली नाम का राक्षस बना। __भगवान पार्श्वनाथ को जंगल में ध्यान करते देखकर पूर्व जन्मका वैर जाग गया। प्रतिशोध की आग में जलते हुए राक्षस ने भगवान को अनेक प्रकार के भीषण उपसर्ग दिए । उन्हें जल में डूबाने के लिए घनघोर वर्षा शुरु कर दी। पार्श्वनाथ जिस स्थान पर ध्यानस्थ खड़े थे वहाँ चारों तरफ जल-प्रलय-सा मच गया । पानी का भयानक वेग बढ़ता गया। पार्श्वनाथ की छाती तक पानी आ गया। तभी स्वर्ग में धरणेंद्र देव का आसन काँपने लगा। वे तुरंत ध्यानलीन भगवान पार्श्वनाथ की सेवा में पहुँचे । भगवान के चरणों के नीचे कमल सिंहासन बना दिया। जैसे - जैसे जल बढ़ता गया, कमल सिंहासन जल में ऊपर उठता गया। ऊपर से पंच फणी नाग का छत्र बना दिया। धरणेद्र पद्मावती दोनों भगवान की सेवा में खड़े हो गए। धरणेंद्र ने मेघमाली दैत्य को ललकारा, वह भयभीत होकर भाग छूटा । उपसर्ग शान्त हो गया। १९३ अपने महान उपकारी प्रभु पार्श्वदेव की सेवा करेनवाले धरणेंद्र - पद्मावती आज भी भगवान पार्श्वनाथ की भक्ति करनेवालों के उपसर्ग दूरकर मनोवांछित कार्य सिद्ध करने में सहायक होते हैं। (१५०)
SR No.002297
Book TitleJain Dharm ke Navkar Mantra me Namo Loe Savva Sahunam Is Pad ka Samikshatmak Samalochan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharitrasheelashreeji
PublisherSanskrit Bhasha Vibhag
Publication Year2006
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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