SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 179
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ “चत्तारि लोगुत्तमा, अरिहंता लोगुत्तमा, सिद्धालोगुत्तमा, साहु लोगुत्तमा, केवलिपन्नतो धम्मो लोगुत्ततमों।" जो लोक में सबसे उत्तम हो, लोक में सर्वोत्तम हो ऐसे अरिहंत सिद्ध, साधु और धर्म ही लोक में उत्तम हैं। सच बात तो यह है कि - जैनों की दृष्टि उत्तमता की ओर रही है। दशधर्म उत्तम क्षमा, उत्तम मार्दव इत्यादि में उत्तमता पर ध्यान दिया गया है। जैन धर्म में उत्तमता से नीचे की कोई श्रेणी है ही नहीं, उस पर ध्यान ही नहीं गया है। जहाँ भी ध्यान गया है, तो वह शीर्ष पर, शीखर पर ध्यान गया है। १९० इस तरह चत्तारि मंगलमं में एक तो शुभकामना है, दूसरी उत्तमता है और तीसरी में शरण है। सूरण यह शब्द बहुत महत्त्वपूर्ण है। सेरण याने समर्पणता । हम पूरी तरह से अपने आपको सोंप रहे हैं। चत्तारि शरणं पवजामि, अरिहंते शरणं पवज्जामि, सिद्धे शरणं पवज्जामि, साहु शरणं वपज्जामि, केवलि पन्नत्तंधम्मं, शरणं पवज्जामि । तो पवज्जामिका सीधा अर्थ यह है कि - मैं शरणमें जाता हूँ। इसमें त्याग भी भूमिका है। आत्मा की खोज में अपने आपको समर्पित करना है। जिन्होने आत्मा की खोज की है, उनकी शरण में जाना है। जिन्होंने धर्म विकसीत किया है उनकी शरण में जाना है। ___ शरणमें जाने का विचार ही अपनेआपमें निर्मलता की ओर यात्रा करने का एक शुभ संकल्प है। चत्तारि मंगलं का जो पाठ है उसके बिना नवकार मंत्र अधूरा रह जाएगा। नमो अरिहंताणं बोलते ही हम चत्तारि शरणं तक - केवलि पन्नतंधम्मं शरणं तक पहुँच जाते हैं। सच पूछा जाए तो नवकार मंत्र सभी आगमों का सार है। उसका नवनीत है। अजितनी बार भी उसका स्मरण करते हैं, तो हमें उसकी व्यापकता का भव्य दर्शन होता है। नवकार मंत्र के पाँच पदोंमें अरिहंत का रंग सफेद, सिद्ध का रंग लाल, आचार्य का रंग पीला, उपाध्याय का रंग हरा और साधु का रंगकाला है। विचार होता है कि - साधु का रंग काला क्यों ? गंभीरता पूर्वक सोचने पर हम जान सकेंगे के काला रंग अवशोषक है। साधु को सोखनेवाला बनना चाहिए । साधुको क्रोध को रोकना चाहिए। यदि कोई उससे वैर करे, तो भी उसे सोखना चाहिए। साधु वह है जो जिनती भी बुराइयाँ हो, उन सबको समुद्र की तरह सोख लें । उसे इस तरह का अवशोषक बन जाना चाहिये कि - वह जो भी अनुकूल - प्रतिकूल हो उसे आत्मसात् कर लें । इसलिए साधुका काला रंग माना गया है। अरिहंत का श्वेत रंग है । श्वेत रंग में सभी रंग निहित है। इसका अर्थ यह हुआ कि - अरिहंतों में साधु भी मौजूद है। अरिहंतमें साधुत्व, उपाध्यायत्व, आचार्यत्व भी मौजूद हैं। रंग विज्ञान को इसमें काफी सोच समझकर गंभीरता और दूरदर्शीता पूर्वक चिंतन, मनके साथ जोड़ा गया है क्या ये वर्ण पंचपरमेष्ठीमें जुड़ गए हैं। रंगों की अपनी निराली (१४७)
SR No.002297
Book TitleJain Dharm ke Navkar Mantra me Namo Loe Savva Sahunam Is Pad ka Samikshatmak Samalochan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharitrasheelashreeji
PublisherSanskrit Bhasha Vibhag
Publication Year2006
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy