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________________ पंचपरमेष्ठी को नमस्कार “सव्व पावप्पणासणो”- सब पापों के नाश में फलित होता है । मंगलाणं च सव्वेसि याने मंगलेषु-सर्वेषु, जितने भी मंगल है, उन सबमें पढमं हवाइ मंगलं याने यह सब मंगलोंमें पहला मंगल है । जब श्रावक-श्राविका साधु-साध्वी से मंगल पाठ का श्रवण करते हैं, तब उन्हें ऐसा लगता है कि - विश्व की सारी संपदा शायद उन्हें मिल गई हों। नवकार मंत्र की श्रृंखलामें तीन बातें है। पहली बात यह है कि - इसे महामंत्र कहते है, नवकार /नमस्कार मंत्र भी कहते हैं। दूसरी बात - फल की है कि - यह सारे पापों का नाश करनेवाला है - सव्व पाव पणासणो। ये सारे पापोंको नाश करनेवाला तभी हो सकता है कि - जब हमारी अंतरात्मा उसके साथ जुड़ गई हो। ऐसा कभी नहीं हो सकता है कि, हम मंत्र से जुड़े न हो, और फल मिल जाएँ यह कैसे संभव हो सकता है ? वास्तवमें सारे मंत्रोंका आयोजन संगीतमय, भक्तिमय हो और जीवन से जुड़ा हुआ हो । तीसरी बात यह है कि - इसमें ये तीन शब्द आते हैं। चत्तारि मंगलं में मंगल, चत्तरि लोगुत्तमा में लोकोत्तम और चत्तारि शरणमें शरण। ___ अब हम इन पर थोड़ा विचार करेंगे । मंगल शब्द शिव और समृद्धिका प्रतीक है। मंगल शब्द की उत्पत्ति के अनुसार 'मंगमलाति' - मनमें उत्साह उत्पन्न करता है उसे मंगल कहते हैं । जो पाप को गलाता है - उसे भी मंगल कहते हैं। कुल मिलाकर इसे हम मंगलाचरण कहते हैं और इसके माध्यमसे सब जीवों के प्रति मंगल कामना व्यक्त करते हैं। जो भी पापमय व्यक्ति, हमारे आसपास है, उनसे बचना चाहते हैं अथवा ऐसा कोई कवच हम अपने चारों ओर पैदा कर लेना चाहते हैं जिससे विपदा आए ही नहीं। "चत्तारि मंगलं, अरिहंता मंगलं, सिद्धा मंगलं, साहू मंगलं, केवलि पन्नत्तो, धम्मो मंगलं," इसमें ऐसा क्यों किया गया कि - अरिहंत, सिद्ध के बाद एक छलांग लगाकर साधुओंको लिया गया। आचार्य और उपाध्याय को क्यों नहीं लिया गया ? हो सकता है - समास के कारण या संक्षिप्ति के कारण ऐसा किया गया हो । या ऐसा हुआ कि साधु जो है, उनकी व्याप्ति ज्यादा हैं । साधुमें आचार्य और उपाध्याय सम्मिलित है, क्योंकि ये सिढ़ियाँ हैं। ऐसी सीढ़ी नहीं है जो अरिहंत की ओर जाति है । अरिहंत में जाने के लिए आचार्य को काफी कुछ करना होता है लेकिन साधु से उपाध्याय और आचार्य में जो रुपांतर हुआ है वह इतना बड़ा रुपांतर नहीं है कि साधु कहने से उपाध्याय या आचार्य की प्रतीति न हो। साधु एक बुनियाद है और इस बुनियाद पर ही तो यह सारी इमारत खड़ी हैं। साधु की महत्ता इसकी बुनियाद या नींव के कारण है। नींव का स्मरण करने पर इन दोनों का अपने आप स्मरण हो जाता है। इसलिए मुझे ऐसा लगता है कि साधु को ही महत्त्व दिया गया है। प्राकृतमें (१४५)
SR No.002297
Book TitleJain Dharm ke Navkar Mantra me Namo Loe Savva Sahunam Is Pad ka Samikshatmak Samalochan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharitrasheelashreeji
PublisherSanskrit Bhasha Vibhag
Publication Year2006
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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