________________
चरणकरणानुयोग, द्रव्यानुयोग, धर्मकथानुयोग एवं गणितानुयोग के रुप में आगम चार भागों में विभक्त है। जंबूद्धीपप्रज्ञाप्ति तथा सूर्यप्रज्ञाप्ति आदि आगम गणितानुयोग में समाविष्ट है। अन्य आगमों में भी गणितिक विषयों का यथाप्रसंग विवेचन हुआ है।
जैनाचार्यों ने नवकार मंत्र के जप में मन की विशेष रुप से स्थिर करने हेतु आनूपूर्वी की रचना की, जो गणना के रुप पर आश्रित है। आनुपूर्वी में नवकार मंत्र के पाँच के पाँच पदों का व्यतिक्रम से जप किया जाता है , जिसका प्रयोजन मन को उसी में जोड़े रखना है। आनुपूर्वी गणित के भंगों की तरह अनेक प्रकार से उल्लिखित की जा सकती है। अनुयोगद्वार सूत्र में आनुपूर्वी का विषय विस्तार से चर्चित हुआ है। वहाँ उसके दस भेद बतलाये गये हैं - १)नामानुपूर्वी २) स्थानाम्मनुपूर्वी ३) द्रव्यानुपूर्वी ४) क्षेत्रानुपूर्वी ५) कालानुपूर्वी ६) उत्कीर्तनानुपूर्वी ७) गणनानुपूर्वी ८) संस्थानानुपूर्वी ९) समाचार्यानु पूर्वी १०) भावानुपूर्वी १७८
गणना के आधार पर रचित आनुपूर्वियों में एक सर्वतोभद्र आनुपूर्वी है। इसमें पाँच - पाँच अंकों के पाँच - पाँच प्रकोष्ठों की पाँच पंक्तियाँ होती है ।उन अंकों को चाहे जिस और से जोड़ा जाये, योगफल पन्द्रह आता है। उदा. - उसका स्वरुप निम्नांकित है -
आनुपूर्वी जाप की विधि इस प्रकार है। उसे पहली पंक्ति से प्रारंभ किया जाये । जैसे ऊपर लिखित सर्वतोभद्र आनुपूर्वी की पहली पंक्ति के प्रथम प्रकोष्ठ में पाँच का अंक है अत: वहाँ नवकार मंत्र के पाँचवे पद णमो लोए सव्व साहूणं का उच्चारण किया जाये। दूसरे प्रकोष्ठ में एक का अंक है ।अत: वहाँ प्रथम पद णमो अरिहंताणं का उच्चारण किया जाये। तीसरे प्रकोष्ठ में दो का अंक है, वहाँ दूसरे पद णमो सिद्धाणं का उच्चारण किया जाये । चौथे प्रकोष्ठ में तीन में तीन का अंक है वहाँ णमो आयरियाणं पद का उच्चारण किया जाये । पाँचवे प्रकोष्ठ में चार का अंक है, वहाँ चौथे पद णमो उवज्झायाणं पद का उच्चारण किया जाये। यों व्यतिक्रम पूर्वक एक नवकार मंत्र का जप होता है। इसी प्रकार आगे अंकों के अनुरुप नवकार मंत्र के पदों का उच्चारण करना होता है। यह क्रम
आगे से चलता रहता है। १७९ __इस पद्धति के आधार पर अनेक प्रकार की आनुपूर्वीयों की रचनाएँ हुई । नवकार मंत्र को सिद्ध करने में नि:संदेह अनुपूर्वियों का क्रम बड़ा ही लाभप्रद सिद्ध हुआ है। आज भी
(१४२)