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________________ ९) हक्का जप - जिस मंत्र के अंत के पद क्षोभोत्पादक हो, उसका जप करना हक्का कहलाता है । अथवा हक्का जप की व्याख्या एक और प्रकार से भी की जाती है - जिस जप में श्वास को भीतर ले जाते समय और बाहर निकालते समय हकार का विशेष रुप से उच्चारण किया जाता है, वह हक्का जप है । यह एक विशेष विधि है जिसका मंत्र के अनुसरण किया जाता है । इस विधि का आध्यात्मक दृष्टि से विशेष उपयोग नहीं होता । १०) नाद जप जप करते समय मन में भंवरे की तरह गुंजार की ध्वनि हो, वह नाद जप है। तन्मयता की दृष्टि से इस जप की विशेष उपयोगिता है। इसका विशेष बोध गुरु गम्य है । ११) ध्यान जप - मंत्रो के पदों का वर्ण आदि पूरक ध्यान करना ध्यान जप है अर्थात् साधक जप करे, तब मंत्र के प्रत्येक वर्ण पर क्रमश: ध्यान करता जाए। जैसे मा उच्चारण करते समय तत्क्षण ण का तत्पश्चात् मो का, इसी प्रकार क्रमश: आगे के वर्णों का ध्यान करते रहना इस जप में समाविष्ट हैं। ' क्य १२) ध्येयैक्य जप - जिस जप में ध्याता का ध्येय के साथ ऐक्स हो जाये, इतनी तन्मयता आ जाये कि ध्येय और ध्याता का भेद ही न रहे, वह धेयैक्य जप है । १३) तत्व जप - पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु तथा आकाश - ये पाँच तत्व है। इनके आधार पर जप करना तत्व जप है । न्त ये तेरह भेद योगविधि, गुणत्रय, चित्र की स्थिरता, ध्यान सम्मतता, तन्मयता तथा तत्वानुसारिता पर आश्रित है । इनमें राजसिक, तामसिक एवं हक्का जाप की लौकिक उपयोगिता है । उनका ग्रहण अध्यात्मिक नहीं है। 1 नामजपके साथ ध्यान जरुर होना चाहिये । वात्सवमें नाम के साथ नामी की स्मृति होना अनिवार्य भी है। मनुष्य जिस-जिस वस्तुके नाम उच्चारण करता है, उस वस्तुके स्वरुप स्मृति से होती है । उसीके अनुसासर भला-बुरा परिणाम भी अवश्य होता है। १७७ आनुपूर्वी जप मंत्र जप के साथ मानसिक एकाग्रता अतिआवश्यक है। उसे प्राप्त कराने हेतु जैनाचार्यों मंत्रों के विविध रूप अविष्कृत किये । अनेक अपेक्षाओं से उनके भेद-प्रभेद किये, क्योंकि ज्ञान का लक्ष्य आचार, साधना और स्वरुपोपलब्धि है, ऐसा वे मानते थे । जैन आगमों में आत्मा, परमात्मा, व्रत, आचार, ज्ञान तत्व आदि अनेक विषयों का अत्यंत सूक्ष्म गंभीर और विशद विवेचन है। गणित का, गणित के आधार पर पदार्थोंका, लोकादि का, नक्षत्रोंका, उन्होंने विस्तृत विवेचन किया है । आगमों में गणित का एक स्वतंत्र विषय है । 1 (१४१)
SR No.002297
Book TitleJain Dharm ke Navkar Mantra me Namo Loe Savva Sahunam Is Pad ka Samikshatmak Samalochan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharitrasheelashreeji
PublisherSanskrit Bhasha Vibhag
Publication Year2006
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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