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________________ मुख-चतुष्टय द्वारा मालकोश राग में द्वादशाविध परिषद के समक्ष, मेघ के सदृश गंभीर ध्वनि से अरिहंत भगवान् देशना रहे हैं, ऐसा भाव चित्त में अंकित रहे, यह सार्थ जप हैं। जिनको मंत्र के अर्थ का ज्ञान नहीं होता, वे वाच्य पदों के अर्थ को ध्यान में नहीं ला सकते । इसलिए ध्येय में जैसी होनी चाहिए वैसी तन्मयता नहीं आती। यदि ध्येय में निरंतर तन्मयता रहे तो जप करने वाले को अपूर्व आनंद प्राप्त होता है। अतएव साधक के लिए नवकार मंत्र का अर्थ भलीभांति जानना आवश्यक है। णमो सिद्धाणं पद का उच्चारण करते ही लोक के अग्रभाग पर शुद्ध स्फटिक सदृश पैंतालीस लाख योजन प्रमाण सिद्ध शिला पर विराजित अनंत सिद्ध भगवंतों का भाव-चित्र साधक के मन में अंकित हो, वे सिद्ध भगवान् निरंजन, निराकार, वीतराग सर्वज्ञ एवं सर्वदर्शी है, संपूर्ण सुख युक्त एवं सर्व शक्तिमान है, सिद्ध भगवान् की इन विशेषताओं का भाव भी साधक के मन में रहे। णमो आयरियाणं पद का उच्चारण करते ही भगवान के धर्मशासन के नायक आचार्य भगवंत का भावचित्र मन में अंकित रहे । साथ ही साथ यह भाव भी उद्वेलित रहे कि वे आचार्यप्रवर ज्ञानाचार, दर्शनाचार, चारित्राचार, तपाचार तथा वीर्याचार - इन पाँच आचारों से सुशोभित हैं एवं अपने शिष्यों से भी इन आचारों का पालन करवाते हैं। णमो उवज्झायाणं पद का उच्चारण करते ही सूत्र के पारगामी उपाध्याय भगवंत का भावचित्र मन में रहे । वे साधुओं को सूत्र सिद्धांत की वाचना दे रहे हैं, यह भाव भी साथ ही साथ में रहें। णमो लोए सव्व साहणं पद का उच्चारण करते ही शांत, दांत-धीर, गंभीर, आचार क्रिया में तत्पर तथा स्व पर कल्याण की साधना में संलग्न साधुसंतों का भावचित्र मन में उद्भासित रहे। ऐसो पंच नमुक्कारो इत्यादि चूलिका के पदों का उच्चारण करते ही साधक अपने मन में ऐसा चिंतन करे कि इन पाँच नमस्कारों से मेरे पापों का नाश हो रहा है, मुझे उत्तम मंगल प्राप्त हो रहा है। इस प्रकार जप करने से चित्त की चंचलता कम होती है, एकाग्रता बढ़ती है तथा आध्यात्मिक आनंद की वृद्धि होती है। ४) चित्तस्थ जाप इसे मानस जाप भी कहा जाता है । इस जप में चित्त की अत्याधिक एकाग्रता की आवश्यकता है। जिनका चित्त इधर-उधर घूमता रहता है, उनसे यह जाप नहीं हो सकता। मन को बंदर की तरह चंचल बतलाया गया है। वह क्षणभर भी कहीं टिकता नहीं कहा गया है। (१३८)
SR No.002297
Book TitleJain Dharm ke Navkar Mantra me Namo Loe Savva Sahunam Is Pad ka Samikshatmak Samalochan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharitrasheelashreeji
PublisherSanskrit Bhasha Vibhag
Publication Year2006
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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