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________________ चुके हैं, ध्यान किया जाता है। दोनों हाथों को मुख के सामने खुले रखकर, दोनों हथेलियों की आयुष्य रेखा मिलावें, सिद्धशिला की आकृति की कल्पना करे, दोनों हाथों की आठों सुंगलियों पर चौबीस तीर्थंकरो का ध्यान करे । जप करते समय प्रत्येक तीर्थंकर का जप इस प्रकार करें - ऊँ हीं श्रीऋषभदेवाय नमः । इसी प्रकार सभी तीर्थकरों के नाम के पूर्व ॐ हीं श्री और अंत में नम: जोड़े। तीर्थंकरों मे नाम में चतुर्थी विभक्ति का प्रयोग करे ।१६५ माला जाप्य जप के आधार के रुप में माला का भी प्राचीन काल से प्रयोग होता रहा है। माला में १०८ मनके होते हैं। १६६ १०८ की संख्या का कारण ऊपर उल्लेखित किया जा चूका है। माला के प्रत्येक मनके पर एक जप किया जाता है। पूरी माला का आवर्तन करने से १०८ नवकार मंत्र का जप होता है। जिस प्रकार कमल-पत्र, कर्णिका आदि को आधार मानकर जप करने से मन में स्थिरता आती है, वैसे ही मन को मंत्र पर टीकाने में माला भी सहायक सिद्ध होती है। यहाँ यह भी ध्यान देने योग्य है कि माला तो बाह्य साधन है, मंत्र का मुख्य संबंध तो साधक की अंतरात्मा के साथ है। इसलिए जप करते समय साधक का मन मंत्र के भाव के साथ संयुक्त रहना चाहिए। यदि मन मंत्र के आशय से सर्वथा पृथक् रहे तो माला फेरने से उतना लाभ प्राप्त नहीं होता, जितना होना चाहिए । माला के साथ - साथ अंत:करण भी जुडना चाहिए। "माला फेरत जुग भया, मिटा न मनका फेर । करका मनका डारिके, मनका मनका फेर ॥” संत कबीर के कथन का अभिप्राय यह है कि माला - फेरनेवाला यदि मनको भी उसमें लगादे तो माला फेरना सार्थक हो जाए। १६७ "महामंत्रनां अजवाला” नामक पुस्तक में श्री उपदेश प्रसाद, श्राद्धविधि आदि के आधार पर जप के संबंधमें उल्लेख हुआ है। - मेरु का उल्लंघन करते हुए अंगुलिके अग्रभाग से व्यग्रचित्तपूर्वक यदि जप किया जाय तो प्राय: अल्प फलप्रद होता है। ___ इससे यह ध्वनित होता है कि - अंगुलिसे जप करना उचित नहीं है। यहाँ कुछ लोग अंगुली के अग्रभाग का अर्थ नख करते हैं। अत: नख को सटाकर जप नहीं करना चाहिए। अंगूठे से निरंतर जप करें तो मोक्ष - पद की प्राप्ति होती है। तर्जनी द्वारा जप करें तो शत्रु का नाश होता है। मध्यमाद्वारा जाप करे तो सभी दास वशगत हो जाते हैं। अत: अनामिकाद्वारा जप किया जायें। १६८ (१३४)
SR No.002297
Book TitleJain Dharm ke Navkar Mantra me Namo Loe Savva Sahunam Is Pad ka Samikshatmak Samalochan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharitrasheelashreeji
PublisherSanskrit Bhasha Vibhag
Publication Year2006
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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