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________________ कुल मिलाकर १०८ होते हैं । इन्हें दृष्टि में रखते हुए १०८ बार मंत्र जप का क्रम चलता आ रहा है । तांगुली जाय जब तक साधक की साधना परिपक्व नहीं होती, तब तक उसे जप आदि धार्मिक क्रियाओं में आलंबन की आवश्यकता रहती है। कमल-जाप्य में जिस प्रकार कमल, उसके पत्र, कर्णिका एवं उन पर परिकल्पित बिन्दुओं के आधार पर जप चलता है, उसी प्रकार अंगुलियों के आधार पर भी जप करने की विधि है । इसको करमाला भी कहा जाता है । मनकों की माला की अपेक्षा इसे श्रेष्ठ माना गया है। प्राचीन काल में करमाला पर ही प्रायः जप किया जाता था, क्योंकि मानसिक एकाग्रता में इससे अधिक सहायता मिलती । करमाला के अनेक आवर्त है । साधारण आवर्त, पटनावर्त, सिद्धावर्त, नवपदावर्त, ह्रीं आवर्त, नंदावर्त तथा ॐ आवर्त मुख्य है, उदाहरणार्थ प्रारंभ में तीन आवर्तो के स्वरुप निम्नांकित है । साधारण आवर्त - साधक अपने दाहिने हाथ की कनिष्ठा अंगुली के नीचे के पोरवे से जप प्रारंभ करें, क्रमशः कनिष्ठा के तीनों पोरवे, चौथा अनामिका के ऊपर का, पाँचवा मध्यमा के ऊपर का, छठा तर्जनी के ऊपर का, सातवां तर्जनी के मध्य का, आठवाँ तर्जनी के नीचे का, नौवां मध्यमा के नीचे का, दसवाँ अनामिका के नीचे का, ग्यारहवाँ अनामिका के मध्य का तथा बारहवां मध्यमा के मध्य का इस प्रकार बारह जप होते हैं । नौ बार गिन लेने से एक माला पूर्ण हो जाती है। - पटनावर्त - पटनावर्त में पाँच परमेष्ठी पदों का जप किया जाता है। नवकार मंत्र के प्रथम पद णमो अरिहंताणं का ब्रह्मरंध्र में, दूसरे पद णमो सिद्धाणं का ललाट में, तीसरे पद णमो आयरियाणं का कंठ में, चौथे पद णमो उवज्झायाणं का हृदय में तथा पाँचवे पद णमो लोए सव्व साहूणं नाभि कमल में ध्यान करे । पटनावर्त का एक अन्य प्रकार भी है, जिसके अनुसार प्रथम पद ब्रह्मरंध्र में द्वितीय पद, ललाट में, तृतीय पद चक्षु मे, चतुर्थ पद श्रवण में तथा पंचम पद मुख में स्थापित करके ध्यान करे । सिद्धावर्त - सिद्धावर्त में वर्तमान काल में चौबीस तीर्थकरों का जो मोक्ष या सिद्ध- पद प्राप्त कर (१३३)
SR No.002297
Book TitleJain Dharm ke Navkar Mantra me Namo Loe Savva Sahunam Is Pad ka Samikshatmak Samalochan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharitrasheelashreeji
PublisherSanskrit Bhasha Vibhag
Publication Year2006
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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