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साधक प्रत्येक बिन्दु पर पूरे नवकार मंत्र का जप करे। बिन्दुओंकी गणना और क्रम को ध्यान में रखता जाये । इस प्रकार उन सब पर १०८ नवकार मंत्र का जप संपन्न होता है।
साधक के मन को एकाग्र एवं सुस्थिर रखने में वह कमल, उसके पत्र, उसकी कर्णिका तथा उन पर परिकल्पित पीत वर्णमय बिन्दु बड़े सहायक सिद्ध होते हैं। उन पर मन टिका रहता है। वे नवकार जप के आलंबन बन जाते हैं। आलंबन के बिना जप करने से मूल लक्ष्य पर ध्यान टिकना कठिन होता है । इसलिए कमल-जाप्य की कल्पना बड़ी मनोवैज्ञानिक और हितप्रद है। १६१
आचार्य हेमचंद्र ने भी योगशास्त्र में कमल के आधारपर नवकार मंत्र के चिंतन का उल्लेख किया है, जो इस प्रकार है - ___ साधक आठ पत्रयुक्त श्वेत कमल की कल्पना करे । कमल के मध्य कर्णिकापर वह नवकार मंत्र के प्रथम पद “णमो अरिहन्ताणं" के सात अक्षरों को भावना के रुप में अंकित करे, फिर उस कमल के पूर्व दिशा के पत्र पर णमो सिद्धाणं दक्षिण दिशा के पत्र “णमो आयरियाणं” पश्चिम दिशा के पत्र पर “णमो उवज्झायाणं' तथा उत्तर दिशा के पत्र पर “णमो लोए सव्व साहूणं" का चिंतन करे। तत्पश्यात आग्नेय कोन में एसो पंच णमुक्कारो, नैऋत्य कोन में "सव्व पावप्पणासणो वायव्य कोन में "मंगलाणं च सव्वेसिं" तथा ईशान कोन में “पढमं हवइ मंगल" की परिकल्पना करे। उन पर चिंतन, जप और ध्यान करे। १६२ ___मंत्र का एक सौ आठ बार जप क्यों किया जाता हैं ? इस संबंध में बतलाया गया है कि मनुष्य हर रोज १०८ प्रकार के पाप करता है। पाप की उत्पत्ति में आरंभ, समारंभ तथा समरंभ ये तीन हेतु है। मानसिक, वाचिक एवं कायिक भेद से ये तीन-तीन प्रकार के होते हैं। करना, कराना, अनुमोदन करना - इनके अनुसार फिर इनके तीन-तीन भेद होते हैं। तदनुसार ३ x ३ X ३ x ३ =२७ भेद होते हैं। क्रोध, मान, माया तथा लोभ - इन चार कषायों का २७ से गुणन करने से २७ x ४=१०८ गुणनफल होता है। प्रतिदिन मनुष्यद्वारा होनेवाले पाप यों एक सौ आठ प्रकार के होते हैं। इन पापों का नाश करने हेतु १०८ बार नवकार मंत्र का जप किया जाता है। इस प्रकार यह क्रम सदा से चलता आ रहा है। यहाँ प्रयुक्त आरंभ शब्द का अर्थ हिंसा है, हिंसा को चालू रखना समारंभ कहा जाता है । समारंभ के अनेक अर्थ है जिनमें विक्षोभ, उत्तेजना, क्रोध, रोष एवं अहंकार भी है। १६३ विक्षोभ, क्रोध आदि से हिंसा को बल मिलता है। इसलिए वह रुकती नहीं है। इसी कारण तीनों को पाप के उद्भव का हेतु माना गया है। ___ एक सौ आठ की संख्या का एक और भी आधार माना जाता है । नवकार मंत्र में अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, तथा साधु - ये पांच पद है। इनमें अरिहंत के १२, सिद्ध के ८, आचार्य के ३६ उपाध्याय के २५ और साधु के २७ गुण होते है। १६४
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