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अपरिवर्तनशीलता का मुख्य कारण यह है कि इस मंत्र में जिन पंचपरमेष्ठियों को नमन किया गया है। वे किसी काल विशेष के साथ संबद्ध नहीं है। उनमें व्यक्ति विशेष की सूचन नहीं है, वे तो उन नित्य, शाश्वत एवं सत्य गुणों के सूचक है जो त्रिकालवर्ती है। अनंत चौबीसियों में जितने भी अरिहंत, वीतराग सर्वज्ञ हुए है, वर्तमान में है, भविष्य में होंगे, उन सबका अरिहंत पद में समावेश हैं। उसी प्रकार सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय एवं साधुपद पर भी यही बात लागू होती है।
वे महापुरुष सदैव नमस्करणीय रहे हैं, वर्तमान में भी वे नमस्कार योग्य है तथा भविष्य में भी नमस्करणीय रहेंगे, क्योंकि उनमें नमस्कार योग्यत्व का आधार आत्म स्वभाव मूलक संवर निर्जरामय मोक्ष रुप धर्म है।
धर्म का मूल स्वरुप कभी बदलता नहीं, संवर, निर्जरा और मोक्ष भी कभी परिवर्तित नहीं होते। ये सभी शाश्वत सत्य के द्योतक है। नवकार इन्हीं पर टिका हुआ है। इसलिए वह न कभी परिवर्तित हुआ है और न कभी परिवर्तित होगा। ___ यह सदा अपरिवर्तनशील रहता हुआ अनंत भव्यात्माओं को आत्मशुद्धि, आत्मकल्याण और कर्म मुक्ति का पथ दिखलाता है। इससे प्रेरणा प्राप्त अनेकानेक भव्य जीवों ने अपने जीवनको सफल बनाया है और बनाते रहेगे। नवकार मंत्र विश्वजनीन, सार्वजनीन एवं सार्वकालिन
जप और जप के प्रकार -
विद्वानों एवं साधकों ने शास्त्रावगाहन एवं अनुभव के आधार पर जप के अनेक विधिक्रम बतलाये हैं। उनमें तीन मुख्य है -
___ कमल-जाप्य, हस्तांगुली-जाप्य तथा माला-जाप्य । जप में निर्मलता और स्थिरता रहे इस हेतु ज्ञानी पुरुषों ने अनेक प्रकार की परिकल्पनाएँ की है, जो जप की पवित्रता में सहायक बनती है। इन तीन प्रकार के जपों का संक्षेप में निम्नांकित विश्लेषण है।
कमल-जाप्य - ___ साधक अपने हृदय में एक श्वेत कमल की कल्पना करे, जिसके आठ पत्र - पखंड़िया हैं। उस कल्पना को यों आगे बढाये - उस कमल के प्रत्येक पत्र पर पीत वर्णयुक्त बारह - बारह बिन्दु हैं। कमल के बीच में जो कर्णिका है, उस पर भी उसी प्रकार के बारह बिन्दुओं की परिकल्पना करे । इस प्रकार कर्णिका सहित पत्रों पर कुल १०८ बिन्दु होते हैं।
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