________________
मुसाफिर - खाना माने । इस प्रकार अनित्यत्व आदि भावनाओंद्वारा अपनी आत्मा को अनुभावित करे ।
नवकार मंत्र की जपाराधना से अनेकानेक गुणनिष्पन्न होते हैं। उससे आत्मा के शुभ कर्म का होता है तथा अशुभ कर्म का संवर निरोध होता है । पूर्वकृत कर्मों की निर्जरा होती है। लोकस्वरुप का बोध प्राप्त होता है। सुलभ बोधित्व प्राप्त होता है तथा भवभव में सर्वज्ञ देव भाषित धर्म की प्राप्ति करानेवाला पुण्यानुबंधी पुण्य कर्म उपार्जित होता है। इस प्रकार की शुभ वासनाएँ साधक के चित्त में निरंतर आते रहने से साधक की पाराधना प्राप्त होता है।
-
आज के भौतिकवादी युग में आध्यात्म का अमृतपान करने के लिए नवकार महामंत्र के समान कोई भी निर्मल सरल मंत्र नहीं है। यह मंत्र कुत्सित विकल्पों से मन की रक्षा करता है । दूषित विचारों से मन का पार्थक्य एक बहुत बड़ा लाभ है। आज के विश्व की स्थिति यह है कि धन, सत्ता एवं वैभव की रक्षा हेतु बल का, प्रहरियों का सैनिकों का आयोजन किया जाता है । स्वास्थ्य की रक्षा हेतु अनेकानेक चिकित्सा केंद्रों का संचालन होता है किंतु संकल्पविकल्पों से मन की रक्षा करने हेतु, उसे पवित्र रखने हेतु, उसे दुर्विचारों से विमुक्त रखने हेतु, एक भी समर्थ, सक्षम, साधन आयोजित होता हो, ऐसा दृष्टिगोचर, श्रवणगोचर नहीं होता । यहाँ यह ज्ञातव्य है कि नवकार मंत्र ही इसका एक मात्र समर्थ साधन है । समस्त मंत्रों में नवकार महामंत्र आत्मा के उत्कर्ष, शांति और सुख की प्राप्ति की दृष्टि से सर्वोपरि है। आराधक के मन में सदैव यह भाव उद्वेलित होता रहे। इससे उसकी जपाराधना में शक्ति संचय होगी ।
आराधक के लिए उपयोगी शिक्षा
नवकार के आराधक की भाव भूमिका अत्यंत पवित्र और उच्च हो, यह आवश्यक है । इसलिए उसे अपने जीवन व्यवहार को सदा पवित्र, शुद्ध और निर्दोष रखना चाहिए। इस संबंध में उच्च कोटि के साधकों तथा ज्ञानि पुरुषों के अनुभव से लाभ लेना चाहिए। उससे जीवन में अंत:स्फूर्ति का जागरण होता है। इस संबंध में कतिपय भावोद्गार यहाँ उपस्थित किये जा रहे हैं।
साधक को किसी की निंदा नहीं करनी चाहिए । पापियों के संबंध में भी केवल भवस्थिति का ही चिंतन करना चाहिए। उनसे घृणा नहीं करनी चाहिए । जो मनुष्य गुण गौरव युक्त हो, पूजनीय हो, उनकी सेवा करनी चाहिए। जिनमें अत्यंत गुण का लव मात्र भी हो, उनके प्रति गुणानुरागिता का व्यवहार रखना चाहिए ।
(१२६)