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________________ नवकार मंत्र और जप - अष्ठ शुद्धियाँ नवकार मंत्र बहुत पवित्र है। इस का जप फलप्रद है। उसके जप के विधिक्रम में द्रव्य, क्षेत्र, काल, आसन, विनय, मन, वचन, तथा भाव की शुद्धि आवश्यक है ।१४१ कोई भी उत्तम कार्य बाह्य एवं आभ्यंतरिक शुद्धि के साथ किया जाये तो उसका फल अवश्य होता है। साधक के मन में पवित्र भाव और उत्साह बढता रहता है। वह जप-साधना में अशांति अनुभव नहीं करता। इन आठ प्रकार की शुद्धियों का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है। १) द्रव्य- शुद्धि : द्रव्य शुद्धि का संबंध अपनी इन्द्रियों और मन को वश में करना आत्मबल के अनुसार क्रोध, माया, मान एवं लोभ रुप कषायों का त्याग करना तथा चित्त में ऋजुता, मृदुता एवं करुणा का भाव जगाना आदि के साथ है। यह साधक की आंतरिक शुद्धि का विषय है। जब साधक जप करने में तत्पर हो तो वह अपने अंत:करण के विचारों को दूर करने का प्रयत्न करे । द्रव्य और भाव से नवकार मंत्र के साथ संबंध जोड़े बिना अपना भाव भ्रमण रुकनेवाला नहीं है। जब तक भाव से नवकारमंत्र की प्राप्ति न हो जाएं, तबतक भाव-प्राप्ति के लक्ष्य हेतु द्रव्य से भी प्रयास चालू रखने होंगे।१४२ जब तक मन में मोह अहंकार कामना आदि के मलिन भाव मनमें रहेंगे तब जप का शुद्ध क्रम घटित नहीं होगा। आंतरिक शुद्धि या द्रव्य शुद्धि को साधने में लंबे समय तक अभ्यास करना आवश्यक है। जप के समय साधक सर्वथा सावधान रहे, उसके मन में कलुषित, मोहाविष्ट भाव उत्पन्न न हों । मन को प्रतिक्षण नियंत्रित करना आवश्यक हैं क्योंकि वह बहुत दुर्बल हैं, चंचल है । जब विकारग्रस्त भावों का प्रवाह आने लगता है तो उसे रोक पाना बहुत कठिन होता है। निरंतर दृढ़ता बनी रहे, तभी वे रोके जा सकते हैं । ऐसा करते हुए क्रमश: जप के अभ्यास में लगे रहने से सफलता प्राप्त होती है। २) क्षेत्र - शुद्धि क्षेत्र का अर्थ स्थान है। जहाँ नवकार मंत्र का जप किया जाये, वह स्थान ऐसा हो, जिसमें, कोलाहल, शोर न होता हो । ऐसे उपद्रव न होते हों, जो चित्त में उद्वेग उत्पन्न करें। मच्छर, डास आदि कष्ट उत्पन्न करनेवाले जीवजन्तु आदि न हो। एकांत हो, लोगों का जहाँ आवागमन न हो । वहाँ का वातावरण शुद्ध हो, उत्तम हो । (११९)
SR No.002297
Book TitleJain Dharm ke Navkar Mantra me Namo Loe Savva Sahunam Is Pad ka Samikshatmak Samalochan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharitrasheelashreeji
PublisherSanskrit Bhasha Vibhag
Publication Year2006
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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