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प्रकरण ५
विविध ग्रंथोंमें साधु पद की व्याख्या और विवेचन -
प्रस्तुत प्रकरण में महानिशीथ सूत्र में साधुपद का विवेचन, नमोक्कार निज्जुक्ति में साधुपद का निरुपण, संयम और तप की अविच्छिन्नता, चारित्राधना के साथ ज्ञान और दर्शन का अविनाभाव., सिरि सिरिवाला कहामें साधु पद, विशेषावश्यक भाष्य में गुरु-शिष्य परिक्षण, तत्वसार में साधुत्व विषयक-विश्लेषण, साधु के लिए वैयावृत्त का महत्त्व, ज्ञानसार में मुनिकी तत्वदृष्टि, त्रिषष्टी शलाका पुरष चरित्तमें साधुपद, बृहद् द्रव्य संग्रहमें परिषह जय, आध्यात्म कल्पद्रुममें साधु भगवंत को वंदना तथा साधु का आदर्श, स्वरुप इत्यादि का निरुपण दिया गया है।
जैन वाड्.मय में ऐसे प्रसंग आते हैं, जहाँ तात्विक स्वरुपात्मक एवं कारण कार्यात्मक आदि अनेक अपेक्षाओं से साधुपद का विविधरुपों में विश्लेषण, विवेचन हुआ है।
जैन धर्म दर्शन या साधना का परम प्राप्त सिद्धपद ही है। अत: उसकी गरिमा और महिमा से जिज्ञासु तथा मुमुक्षुवृंद अवगत रहे, प्रेरित रहे । इसे विद्वान आचार्यों और ग्रंथकारोने अपने ध्यान में रखा क्योंकि साहित्य सर्जन का लक्ष्य 'स्वान्तः सुखाय होने के साथ-साथ सर्वजनोपकाराय' भी होता है। अत: समस्त लोगों के उपकार हेतु लेखकोने अपने शास्त्रज्ञान तथा अनुभूति के आधारपर जो लिखा वह बहुत महत्त्वपूर्ण है। ___आगमोत्तर कालमें लेखक, कवि आदियोने नवकार मंत्र के विषयमें और साधुपद के विषयमें विस्तृत वर्णन किया हैं। साधुपद के विवेचन से मनमें निर्वेद और वैराग्य उत्पन्न होता है । नवकार मंत्र और साधुपद साधक को उच्चतम स्थितितक ले जाता है । साधु पद का महत्त्व असाधारण है। नवकार मंत्र की साधना करनेवाले साधु और सर्व साधकों को स्वयंका अंतरिक ऐश्वर्य, तप और संयम का भावात्मक सुख प्राप्त हो जाता है।
नवकार मंत्र यह व्यवधानरहित मोक्षका राजमार्ग है। नवकार मंत्र यह परमसुख और शांति देनेवाला है। नवकार मंत्र से और साधुपद की आराधना से आत्मा को शुद्ध अवस्था प्राप्त होती है।
नवकार मंत्र से शुद्ध चेतना की अनुभूति होती है। नवकार मंत्र यह भवरोग को दूर करने का रामबाण उपाय (औषध) है।
नवकार मंत्र अमृत बिंदू के समान हैं। नवकारमंत्र यह Law of Gravity कार्य करता है तथा आध्यात्मिक सृष्टि में Law of