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________________ साधना कीही प्रथम नींव है। वैराग्य सहित साधना ही सफल होती है। प्रथम संसार की हेयता, उदासीनता, अरुचिता होने पर साधना सफल होती है। वैराग्य आनेपर संसार की असारता दिखाई देती है और साधुपद को वह साधक प्राप्तकर सकता है। ___ मैत्री, प्रमोद, करुणा और माध्यस्थ ये चार भावनाएँ धर्म को आत्मा के साथ जुड़ाती है। उसे दृढ़ करती है, इसलिये उसे योग भावना कहते हैं। उस योग भावना का आध्यात्मिक महत्त्व तो है ही, उसी के साथ उनके चिंतन से मानवमें सच्ची मानवता विकसित होती है। यह दृढ़ होने पर ईर्ष्या, द्वेष और (241करक कलह के लिए कोई स्थान नहीं रहता है। राग-द्वेष, अभिमान और स्वार्थसेही, इस दुनियामें कस्के पृथ्वी पर स्वर्ग निर्माण कर सकते हैं। समाज, राष्ट्र और धर्म के लिए उपयुक्त ऐसी चार योग भावना का इस प्रकरण में वर्णन किया गया है इसलिए आत्म शांति के साथ विश्वशांति और विश्वमैत्री निर्माण हो सकती है। नवकार मंत्र की आराधना में संपवित्र होते ही साधक अशुभसे छूटता है और मैत्री भावना में प्रविष्ट होता है। नवकार मंत्र का पाँचवा पद साधु का जो इस भाव का द्योतक है। प्रमोद भावना की नवकार मंत्र की पाँचवे, चौथे, तीसरे पद के साथ संगति है। साधु, उपाध्याय और आचार्य स्वयं गुणी होते हैं गुणग्राही होते हैं, तथा गुणीजनों को आदर देते हैं क्योंकि वे जानते हैं कि - सद्गुणो ही जीवन की उच्चता और महत्ता है। प्रकरण ४ जैनागमों में साधु पद का विश्लेषण प्रस्तुत प्रकरणमें आचारांग सूत्र में साधु का स्वरुप, साधु के लक्षण, साधु का धर्म, भिक्षाचारी, मधुकर वृत्ति, साधु को न आचारने योग्य बावन अनाचार, पृथ्वीकाय से त्रस कायतक सचेतन का वर्णन, आहार शुद्धि, परिष्ठापन की विधि,जलग्रहण-अन्नग्रहण, भिक्षुकी चर्या, पाँच महाव्रत, छट्ठारात्रिभोजन, पाँच समिति, तीन गुप्ति आदि का विस्तृत वर्णन उत्तराध्ययन, दशवैकालिक आदि सूत्रों में से लिया गया है। ___ हरेक महाव्रतरुपी रत्न की रक्षा के लिए भावनारुपी पाँच रक्षक नियोजित किये गये हैं। यदि पहरेदार सावधान होगा तो असंयम रुपी चोर साधक के आचरणकोशमेंसे इन रत्नों की चोरी नहीं कर सकेगा। इस प्रकरणमें साधुपद का भी विस्तृत वर्णन किया गया हैं। जिसकेद्वारा आत्मा को पापकर्म के आचरण से रोका जाए वही संयमी कहा जाता है । इस प्रकार साधुपद का संशोधनात्मक अभ्यास चौथे प्रकरणमें दर्शाया गया है ।
SR No.002297
Book TitleJain Dharm ke Navkar Mantra me Namo Loe Savva Sahunam Is Pad ka Samikshatmak Samalochan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharitrasheelashreeji
PublisherSanskrit Bhasha Vibhag
Publication Year2006
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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